भोपाल। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की ओर से जारी एक सूचना में मप्र की शिवराज सरकार की पोल खुल गई है। नेपाल पीड़ितों के लिए करोड़ों कलेक्ट करने वाली शिवराज सरकार मात्र 2 साल की रेप पीड़िता को सहायता देना नहीं चाहती थी, मानवाधिकार आयोग को इसके लिए 2 साल तक संघर्ष करना पड़ा, तब कहीं जाकर शिवराज सरकार सहायता के रूप में 5 लाख रुपए देने को तैयार हुई।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने हस्तक्षेप कर मध्यप्रदेश के एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में वार्ड बॉय द्वारा दो साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म किए जाने के मामले में राज्य सरकार से पीड़ित बच्ची को पांच लाख रुपये की सहायता दिलवाई। दो साल की बच्ची के साथ शाजापुर जिले के कनाड गांव में 15 मार्च 2013 को वार्ड बॉय ने दुष्कर्म की वारदात को अंजाम दिया था।
इस मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के हस्तक्षेप के बाद पीड़ित बच्ची के माता-पिता को यह सहायता राशि दी गई। इससे पहले आयोग के नोटिस के जवाब में राज्य की शिवराज सिंह चौहान सरकार ने कहा था कि आयोग द्वारा पीड़िता को पांच लाख रुपये अंतरिम राहत के रूप में देने की सिफारिश कानून सम्मत नहीं है।
हालांकि आयोग के सदस्य न्यायाधीश डी. मुरुगेसन ने अपनी सिफारिश को दोहरात हुए कहा कि आयोग के पास मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम के तहत उचित सहायता दिलाने का विशेषाधिकार है। उन्होंने कहा था कि इस तरह के मामलों में मुआवजा देने के लिए आयोग राज्य सरकार के नियमों से बंधा नहीं है और इसीलिए आयोग इस बात पर किसी भी प्रकार की दलील स्वीकार नहीं करेगा कि सहायता राशि नियमों के मुताबिक नहीं है।
इस संबंध में कनाड पुलिस थाने में एक मामला दर्ज करते हुए पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर लिया था। पुलिस मामले में आरोपपत्र भी दाखिल कर चुकी है।