राकेश दुबे@प्रतिदिन। तकनीकी शिक्षा में परिवर्तनों की सिफारिशों के साथ एम के काव की अध्यक्षता वाली अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद, यानी एआईसीटीई समीक्षा कमेटी ने अपनी रिपोर्ट मानव संसाधन मंत्रालय को सौंप दी है। मई, 2014 में एनडीए सरकार के गठन के बाद उच्च शिक्षा की समस्याओं का हल ढूंढ़ने के लिए दो समितियां बनाई गई थीं।
इनमें एम के काव कमेटी के अलावा, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, यानी यूजीसी की समीक्षा के लिए गठित डॉ हरि गौतम कमेटी भी थी। दोनों कमेटियों को यह अध्ययन करना था कि भविष्य में इन दो संस्थाओं का कामकाज कैसे चलेगा? इन्हें इनके मौजूदा स्वरूप में ही बनाए रखा जाए या इनमें कोई ढांचागत परिवर्तन किया जाए? कुछ लोग पश्चिमी देशों का हवाला देते हुए नियामक संस्थाओं को खत्म कर समूची उच्च शिक्षा को बाजार की शक्तियों के हवाले कर देने की बात करते हैं, लेकिन शायद भारत में अभी यह संभव नहीं है।
वैसे तो उच्च शिक्षा के क्षेत्र में एक दर्जन नियामक संस्थाएं काम करती हैं, पर इनमें यूजीसी और एआईसीटीई का विशेष महत्व है, क्योंकि उच्च शिक्षा पाने वाले अधिकांश विद्यार्थी इनके दायरे में आते हैं। एआईसीटीई की स्थापना 30 नवंबर, 1945 को देश में तकनीकी शिक्षा के विस्तार के लिए एक नोडल संस्था के रूप में की गई थी| 1947 में देश में कुल 43 तकनीकी संस्थाएं थीं, जिनकी संख्या अब बढ़कर 10500 हो गई है। इन 10500 संस्थाओं में 14000 से अधिक कोर्सों के तहत 39 लाख विद्यार्थी पढ़ रहे हैं। वर्ष 1995 तक अधिकांश इंजीनिर्यंरग व मैनेजमेंट कॉलेज महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु एवं आंध्र प्रदेश में थे।
एआईसीटीई समीक्षा कमेटी ने विगत सात-आठ महीनों में पिछली तमाम रिपोर्टों का अध्ययन करने और राष्ट्रीय स्तर पर तकनीकी शिक्षा से जुड़े हुए विशिष्ट व्यक्तियों से मिलने के बाद जो रिपोर्ट मानव संसाधन मंत्रालय को सौंपी है, उसमें अनेक सिफारिशें ऐसी हैं, जिनको यदि ईमानदारी से लागू किया जाए, तो तकनीकी शिक्षा की कायापलट हो सकती है। इनमें सबसे प्रमुख सिफारिश है एआईसीटीई को पूरी तरह स्वायत्त संवैधानिक दर्जा देना, ठीक वैसे ही जैसे कि चुनाव आयोग, सेबी, ट्राई, वगैरह को मिला हुआ है।
इस संस्था पर इंस्पेक्टर राज चलाने और भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं, इसलिए एम के काव कमेटी ने यह भी सिफारिश की है कि इस स्वायत्तशासी संस्था को भविष्य में तकनीकी संस्थाओं में मार्गदर्शन, गुणवत्ता सुधार और विकास पर अधिक ध्यान देना चाहिए, न कि लाइसेंसिंग से जुड़े कार्यों पर। कमेटी का कहना है कि अगले 10 साल में एआईसीटीई से मान्यता प्राप्त सभी तकनीकी संस्थाओं को स्वायत्त (ऑटोनोमस) बनाकर विश्वविद्यालयों की संबद्धता के शिकंजे से मुक्त करना चाहिए, जिसके लिए इस कमेटी ने रेटिंग और एक्रीडिएशन की पद्धतियों को अपनाने का सुझाव दिया है। अभी तक इस संस्था में यह काम नेशनल एक्रीडिएशन बोर्ड, यानी एनबीए करता था, जिसे अब एक अलग निकाय बना दिया गया है। काव कमेटी ने रेटिंग और एक्रीडिएशन की एक की बजाय, अनेक संस्थाएं स्थापित करने का भी सुझाव दिया है।
तकनीकी और उच्च शिक्षा पर पिछले दशकों में अनेक कमेटियां बैठाई गई हैं, जिनमें यशपाल कमेटी, सैम पित्रोदा कमेटी, अंबानी-बिड़ला कमेटी, यूआर राव कमेटी, धरनी सिन्हा कमेटी, ईश्वर दयाल कमेटी आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। दुर्भाग्य यह है कि उच्च शिक्षा पर चिंतन-मनन में हम जितने आगे रहे हैं, उसको अमली जामा पहनाने में उतने ही पीछे हैं।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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