आर्थिक क्षेत्र की चुनौतियाँ गंभीर

Bhopal Samachar
राकेश दुबे@प्रतिदिन। अगर केंद्र ने कृषि अर्थव्यवस्था को, पटरी पर लाने के लिए पर्याप्त तैयारी नहीं की, तो इस वित्त वर्ष का अंत निम्न विकास दर और उच्च मुद्रास्फीति के साथ हो सकता है। यह महज अनुमान नहीं है हकीकत है, और उसके पीछे ठोस तर्क हैं। केंद्रीय बैंक ने जनवरी, 2016 में मुद्रास्फीति के छह फीसदी की ऊंची दर पर और आर्थिक विकास दर के 7.6 प्रतिशत पर रहने का अनुमान लगाया है।

गौरतलब है कि 7.6 प्रतिशत का यह आंकड़ा पुरानी पद्धति के मुताबिक करीब 5.5 प्रतिशत के बराबर होगा। यूपीए के कार्यकाल के दौरान अर्थव्यवस्था प्रतिशत के लिए सबसे बुरा वर्ष 2013-14 रहा, जब आर्थिक विकास दर लगभग 4.8 फीसदी दर्ज की गई थी। लेकिन नई सरकार ने आधार वर्ष बढ़ाकर आर्थिक विकास दर को जिस तरह आंकड़ों में ऊपर उठाया है, उसके मुताबिक तो 2013-14 की विकास दर नाटकीय ढंग से करीब सात फीसदी हो जाती है! इसलिए सात प्रतिशत से अधिक विकास दर निश्चित तौर पर गर्व करने लायक नहीं है|

यह तर्क और किसी के नहीं भारतीय रिजर्व बैंक के हैं। इस आकलन का शेयर बाजार पर बहुत बुरा असर पड़ा और रिजर्व बैंक की मौद्रिक समीक्षा के बाद बाजार 600 अंक नीचे लुढ़क गया। तब से बीएसई सूचकांक 1000 अंक से ज्यादा गिर चुका है और पिछले वर्ष राजग सरकार के सत्ता में आने के बाद उसने जो बढ़त हासिल की थी, लगभग वह सब गंवा दिया है। बाजार की घबराहट का कारण यह है कि जीडीपी एवं मुद्रास्फीति से संबंधित भविष्यवाणी ने उस अनिश्चितता को बढ़ा दिया है, जो विकास के प्रचार के बाद भी हाल के महीनों में बढ़ती गई है। रघुराम राजन संभवतः वैश्विक बाजार के उन खिलाड़ियों एवं निवेशकों के बीच विश्वसनीय बने रहना चाहते हैं, जो मानते हैं कि वह सच बोलने का साहस रखते हैं। राजन ने यह भी कहा कि वह अर्थव्यवस्था के चीयरलीडर नहीं हैं। वे लोग दूसरे हैं, जो ऐसा करते हैं!

इस तरह से रिजर्व बैंक के गवर्नर ने कुछ विशिष्ट टिप्पणियां की हैं। पहला, मानसून के संदर्भ में अनिश्चितता है और सबसे बुरी खबर यह है कि इस वर्ष दीर्घकालीन औसत के हिसाब से वर्षा 88 प्रतिशत हो सकती है। यह अर्थव्यवस्था के लिए अनुकूल नहीं है। रिजर्व बैंक ने कच्चे तेल के मूल्य बढ़ने की भी आशंका जताई है, जिससे मुद्रास्फीति का जोखिम बढ़ेगा। राजन के मुताबिक, आगे ब्याज दरों में कटौती इस बात पर निर्भर करेगी कि इन कारकों का क्या रुख रहता है। रिजर्व बैंक इस बात पर भी नजर रखेगा कि सरकार भविष्य में खाद्य भंडारों का प्रबंधन किस तरह करती है। खाद्य भंडारों का बेहतर प्रबंधन मुद्रास्फीति कम करेगा और भविष्य में ब्याज दरों में कटौती की संभावनाओं के द्वार खोलेगा।

इससे प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री, दोनों की दुविधाएं बढ़ेंगी। वे न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी के पक्ष में हैं, लेकिन अगर वे ऐसा करते हैं, तो रिजर्व बैंक आगे ब्याज दरों में कटौती नहीं करने के लिए इसका बहाने के रूप में इस्तेमाल करेगा, जिससे उद्योग जगत दुखी हो जाएगा। लिहाजा प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री और रिजर्व बैंक के गवर्नर-तीनों नीति-निर्माताओं के सामने आगे कठिन चुनौती है।

श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com


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