दोस्तों मध्यप्रदेश शिक्षा विभाग सरकारी स्कूलों में पढाई क्यों नही कराना चाहता ? क्या कारण है जो सरकारी स्कूलों के गरीब बच्चों को 100% शिक्षा से वंचित करना चाहता है ? अन्य शासकीय विभागों के व भरपूर कर्मचारियों के होते सारे काम मास्टरों से क्यों करवा रहा है ?
अब नये सत्र को ही ले लीजिये सत्र 2015-16 जो की 16 जून से शुरू हो चूका है। और समस्त निजी स्कूलों में अध्यापन शुरू हो गया है या होने वाला है और हमारे बुद्धि जीवी शिक्षा अधिकारियों ने सत्र शुरू होते ही सफ़ेद कागज़ को काला कर अध्यापन या शिक्षण की बात ना करते हुए सरकारी शिक्षा का बेडागर्क करने की पुनः शुरुवात कर दी है वर्षो से यही हो रहा है और लीजिये नवीन सत्र के कुछ शुरुवाती आदेश----
1. अब बच्चोे को मास्टर दूध पिलायेंगे
अब दूध पिलायेंगे तो हिसाब भी रखेंगे और जानकारिया भी बनायेंगे अब जब दूध पिलाना है तो प्रशिक्षण भी होंगे और दूध भी सुबह प्रार्थना होते ही पिलाना है तो सुबह सुबह स्कूल का चुल्हा भी जल जाएगा और पानी गरम कर दूध बनेगा फिर सभी बच्चों को पिलाया जाएगा अब ये सब करने में 1 घंटा तो लग ही जाएगा और बच्चे जबतक दूध ना पी लें उनका मन केसे पढाई में लगेगा।
दूसरी और मास्टर भी बेचारा दूध पिलाने की व्यवस्था में चाहकर भी कौन सा अध्यापन कार्य करवा पायेगा यदि दूध पिलाने के समय अध्यापन करवाया और दूध नही पिलाया तो जनशिक्षक और brc मास्टर को दण्डित कर अस्पताल की दूध ब्रेड खिलवा देंगे।
अब जब एक घंटा दूध बांटने में लगा गया तो दूसरी चिंता भोजन कराने की खडी है सभी को समय पर भोजन भी वितरित करवाना है। और उसकी भी रोज की लिखा पड़ी करनी है।
2.दूसरा फरमानजाति प्रमाण पत्र बनाने का भी आ गया है अब स्कूल के सभी मास्टर जाति के फॉर्म भरेंगे और बच्चो को सभी प्रमाण पत्र लाने को बाध्य करेंगे अब जब मास्टर जाति के फॉर्म भरेगा तो अध्यापन तो होने से रहा और बच्चे का भी मन प्रमाण पत्र लाने और मास्टर तक पहुचाने के लिए लालायित रहेगा क्युकी मास्टर को भी फॉर्म समय सीमा में जमा करने का फरमान है अब यदि कोई बच्चा प्रमाण पत्र नहीं ला सकता तो वो स्कूल ही नहीं आएगा क्युकी स्कूल में मास्टर ने प्रमाण पत्र लाने को जो कहा है और यदि मास्टर ये फॉर्म समय सीमा में ना भरे तो जनशिक्षक अउर वरिष्ठ अधिकारी मास्टर को फॉर्म से बहार कर देंगे।
3.तीसरा आदेश सभी बच्चो के बैंक खाते खुलवाने है ड्रेस और सायकल के चेक वितरित करने है ये कार्य भी जटिल है इसमें भी घर घर जाना पड़ता है की खाता खुलवा लो नही तो विभाग मास्टर का खाता बंद कर देगा अध्यापन चौपट मास्टर घुमे गली गली और खाता खुले तो चेक बांटना जानकारी बनाना जानकारी पहुचाना सूचि बनाना कार्य शुरू हो जाता है।
4. चौथा आदेश संकुलो में बाबू के रहते कंप्यूटर के रहते संकुलो के अंतर्गत आने वाले स्कूलों के बच्चो की जानकारी के होते और तो और इंटर नेट कनेक्शन के होते मास्टरों को mp online जाकर बच्चो को अपडेट कराने का कार्य करना है व मार्केट रेट पर भुगतान भी करना है यदि नही किया तो शिक्षा विभाग के बुद्धि जीवी मास्टर को अपडेट करने को तैयार है। अब बोलो मास्टर केसे अध्यापन हेतु समय निकालेगा अगर वो चाहे भी तो हमारे बुद्धि जीवी उसको निकाल देंगे।
5. पंचायत सचिव के होते हुए मास्टर को बच्चो की समग्र आइ डी में सटीक प्रमाण ना होने की दशा में पुरे पुरे साल उलझे रहना है क्युकी पंचायत ने हाथ खड़े कर दिए सचिव समय सीमा में बनाते नही और हमारे शिक्षा विभाग के बुद्धि जीवी हर दुसरे दिन सूचि की मांग करते है और जब देखो तब मीटिंग में बुलाकर अध्यापन कार्य चोपट करते है।
अब इन नवीन सत्र के शुरुवाती आदेशो और कार्यो के साथ साथ कई उत्सवो की भी लाइन लगी हुई है अभी प्रवेश उत्सव हुआ फिर योगा उत्सव हुआ अभी पुस्ताकोत्सव होने वाला है और दो चार दिन बाद कोई और नया उत्सव मानेगा।
दोस्तों दूसरी और निजी शालाओ में मास्टर प्री कोर्स करवा चुके है व उनको उपरोक्त वर्णित कई कार्य नही करने पड़ते और यदि कोई कार्य किया भी जाता है तो अन्य कार्यो के लिए कार्यालयीन स्टाफ होता है और हमारे सरकारी प्राथमिक और कई माध्यमिक स्कूलों में विभाग चपरासी तक नियुक्त नही कर सका है और चपरासी से प्रभारी तक का काम अकेला मास्टर करता है।
अब में इन बुद्धि जीवी शिक्षा अधिकारियों से पूछना चाहता हूँ की जब मास्टर को सत्र शुरू होते ही उपरोक्त कार्यो में लगा दिया गया है और अभी तो सत्र की शुरुवात ही है तो सरकारी मास्टर चाहते हुए भी केसे अच्चा रिजल्ट और अच्छी शिक्षा व 100%प्रतिशत अध्यापन कार्य कर सकता है और दूसरी और यही शिक्षा अधिकारी सरकारी स्कूल की तुलना निजी से कर मास्टर को दोषी ठहराते है क्या ये उचित है??
क्या ये अन्य गैर शैक्षणिक कार्य सम्बंधित विभाग से नही कराये जा सकते??
क्या मास्टर को सिर्फ अध्यापन कार्य हेतु मुक्त नही किया जा सकता??
क्या हर स्कूल में गैर शैक्षणिक कार्यो हेतु व अन्य कार्य हेतु 2 बाबू और 1 चपरासी की नियुक्ति नही की जा सकती??
दोस्तों यदि विभाग और सरकार चाहे तो आज सरकारी स्कूलों का स्तर सुधर सकता है और हर मास्टर अपना 100% अध्यापन कार्य कर सकता है और हर सरकारी स्कूल का परिणाम अन्य निजी शालाओ से बेहतर हो सकता है परन्तु इस और ना तो कभी विभाग का ध्यान गया ना सरकार का जो की दुखद है क्या गरीब के बच्चो को पूर्ण शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार नही है?? या विभाग चाहता ही नही की सरकारी स्कूल की गुणवत्ता बढे और गरीबो के बच्चे भी उनके माता पिता का मास्टर का और देश का नाम रोशन करे??
दोस्तों यदि वर्तमान व्यवस्था पर विचार नही किया तो वो दिन दूर नही जब स्कूल पाठशाला की जगह भोजशाला में तब्दील होकर झूलाघर बन जायेंगे जहा मास्टर जानकारियों में उलझा रहेगा और बच्चे खेलकर घर चले जायेंगे और शिक्षा और शिक्षण का नामो निशाँ बाकी नही रहेगा।।
अभी तो सत्र की शुरुवात है आगे आगे देखिये होता है क्या??
आपका मित्र
मुश्ताक खान
भोपाल।