मध्यान्ह भोजन योजना भी DBT की तर्ज पर लागू होनी चाहिए

Bhopal Samachar
दोस्तों 16 जून से शासन आदेश के तहत मध्यान्ह भोजन का वितरण किया जाना है। शासन द्वारा बनाई गई उक्त योजना बहुत अच्छी है परन्तु इसका सीधा व पूर्ण लाभ बच्चों को शायद ही मिल पा रहा है। हम बात कर रहे है ग्रामीण मध्यान्ह भोजन व्यवस्था की जो विगत कुछ वर्षो से स्थानीय समूह द्वारा किर्यान्वित किया जाता है।

दोस्तों पिछले कई वर्षो से शासन द्वारा ना तो खाद्यान का और ना ही राशि का आडिट किया गया है और ना ही बच्चो को मीनू अनुसार भोजन ही दिया जाता है और ये बात जमीनी स्तर पर सच भी है जो पारदर्शी ओचक निरिक्षण से पता की जा सकती है। लोग स्थानीयता के कारण मनमर्जी का भोजन व मनमर्जी की मात्रा में भोजन प्रदान कर योजना को पलीता लगा रहे है और बच्चो की खुराक पूर्ण रूप से उन तक नही पहुंच पा रही है।

मास्टर चाह कर भी स्थानीयता के कारण विरोध नही कर पाता है और बिचोलिये लाभ उठाते है। आजतक कितना गेहू कितना चावल आया और उपयोग हुआ कोई नही जानता व ना ही आज तक कोई जांच की गई।

दोस्तों यदि सरकार योजना का सही संचालन करना चाहती है तो जमीनी स्तर के शिक्षकों के द्वारा आये सुझाव अनुसार व्यवस्था में कुछ परिवर्तन कर योजना को सीधे डायरेक्ट बेनिफिट के जरिये योजना का लाभ बच्चो तक सीधे पहुंचाया जा सकता है व इस परिवर्तित योजना से बालक व बालिका दोनों की शिक्षा में बढावा हो सकता है। वर्तमान में कई बालिकाए शाला से वंचित हो छोटे बच्चों की देखरेख व घर के कार्य करती है वो भी इस परिवर्तित योजना का लाभ लेने हेतु पालकों के द्वारा स्कूल भेजी जायेंगी।

कोई अतिरिक्त आर्थिक खर्च भी नही होगा वर्तमान में निर्धारित राशि व खाद्यान्न मात्रा जो पिछले सत्र में थी वो निम्न है-

विगत सत्र 2014-15 अनुसार

प्राथमिक शाला में-
प्रति छात्र राशि-3.49
प्रति छात्र खाधान्न-100 ग्राम प्रति दिन

माध्यमिक शाला-
प्रति छात्र राशि-5.00
प्रति छात्र खाधान्न-150 ग्राम प्रतिदिन

सरकार व शिक्षा विभाग हेतु मध्यान्ह भोजन योजना में(DBT)परिवर्तन हेतु सुझाव
दोस्तों यदि सरकारी स्कूलों में बच्चो की शत प्रतिशत उपस्थिति सुनिश्चित करनी है तो सरकार को डायरेक्ट बेनिफिट स्कीम अनुसार और वर्तमान निर्धारित मात्रा व राशि के समान्तर प्रति बच्चे को 5 किलो गेंहू और 5 किलो चावल और 5 रुपए के मान को बढाकर 200 रूपये प्रतिमाह की नकद राशि चेक द्वारा प्रति बच्चे को प्रदान करनी चाहिए जिस से बच्चो के साथ पालको को भी सरकारी स्कूल से मिलने वाली सुविधा का सीधे लाभ होगा व बच्चा अपनी निर्धारित मात्रा का पारदर्शी अन्न को ग्रहण कर पायेगा और इस तरह के प्रति माह मिलने वाले अनाज व राशि से प्रभावित होकर सरकारी स्कूल में निश्चित ही बच्चो की संख्या बढेगी व जो कन्याए शाल़ा नही आ पाती उनको भी माता पिता अनाज व राशि के लाभ हेतु शाला में दर्ज करवाएंगे और जो लाभ सरकार बच्चो को दे रही है वो सीधे उनको मिलेगा और निश्चित ही ये योजना सफलता के चरम पर पोहोचेगी।

वर्तमान में ये मात्रा और राशि वर्तमान में सरकार द्वारा ही निर्धारित है वर्तमान में 100 ग्राम गेंहू चावल प्रति माह वितरण से प्रति बच्चा 6 किलो अनाज लगता है जिसे 5 किलो गेंहू और 5 किलो चावल के मान से 10 किलो कर देना चाहिए व 5 रुपए प्रतिदिन के मान से निर्धारित राशि को 150 प्रति माह के स्थान पर 200 रुपए नवीन सत्र से कर देना चाहिए बाकी प्रतिवर्ष जो प्रति बच्चा राशि बढती है उस अनुसार बच्चे की प्रतिमाह की राशि में समयनुसार बढोतरी की जाती रहे इस व्यवस्था से बिचोलियो से भी मुक्ति मिलेगी व रोज रोज की समस्या से स्कूल सटाफ़ मुक्त रहकर शिक्षण कार्य करेगा इस से अन्य कोई आर्थिक हानि भी नही होगी व खाना बनाने वालो का मानदेय भी बचेगा जिस से सरकारी खजाने में आर्थिक इजाफा होगा।

उक्त परिवर्तन पश्चात होने वाले लाभ-
1.बालिका शिक्षा को सीधे लाभ के कारण पालक बढावा देंगे।
2.बच्चो की नियमितता बनेगी क्युकी लाभ प्रति माह मिलेगा।
3.कोई अतिरिक्त आर्थिक बोझ नही होगा।
4.गैस व लकड़ी की खपत कम होगी।
5.बर्तनों की राशि बचेगी।
6.भण्डार व रसोई घर की मरम्मत राशि बचेगी।
7.शिक्षण समय बचेगा।
8.भोजन सम्बन्धी दुर्घटनाओं से मुक्ति मिलेगी।
9.बिचोलियो से व भोजन सम्बन्धी विवादों से मुक्ति मिलेगी।
10.जो मात्रा प्रति माह की निश्चित है वो मात्रा पूर्ण रूप से बच्चे को मिलेगी।

आपका मित्र
मुश्ताक खान
भोपाल

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