राकेश दुबे@प्रतिदिन। सारा सरकारी तन्त्र प्रचार कर रहा है कि जीडीपी दर में वृद्धि के मामले में भारत चीन से आगे जा निकला है!और यह बात ज्यादा हैरान कर रही है कि जीडीपी विकास के मामले में भारत न सिर्फ चीन से आगे निकल गया है, बल्कि आने वाले समय में वह आगे ही रहेगा। क्या इन आंकड़ों में कोई सच्चाई है? अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) और विश्व बैंक इस मामले में भारत की तरफदारी क्यों कर रहे हैं? ये ऐसे सवाल हैं, जिनके जवाब खोजना जरूरी हैं |
आंकड़ो के अनुसार, जनवरी से मार्च की अवधि में हमारे जीडीपी के विकास की दर 7.5 प्रतिशत थी, जबकि इसी अवधि के दौरान चीन की विकास दर सात प्रतिशत। यानी कि हम इस दौड़ में चीन से आगे हो गए। भारत में औद्योगिक उत्पादन पहले से बढ़ा है और सेवा क्षेत्र में हमने अच्छी तरक्की की है। यदि आंकड़ों को मानें, तो 2014-15 में जीडीपी की विकास दर 7.3 प्रतिशत रही, जबकि सरकारी अनुमान 7.4 प्रतिशत था। इस दौरान चीन के जीडीपी की विकास दर 7.5 प्रतिशत थी।
ये आंकड़े अर्थव्यवस्था की सच्चाई नहीं बयां करते, क्योंकि ये विकास की सही तस्वीर नहीं पेश करते। इनमें आंकड़ों की बाजीगरी है, जो हकीकत से दूर है। दरअसल विकास का पैमाना सिर्फ इनसे ही तय नहीं होता। वह अर्थव्यवस्था में निवेश, कर्ज में उठाव, रोजगार वगैरह सभी से जुड़ा है और इन सभी में तेजी के लक्षण नहीं दिख रहे हैं। दरअसल जीडीपी की विकास दर तय करने वाले आंकड़े काफी हद तक भरमा रहे हैं। पहले ये आंकड़े सिर्फ दो हजार कंपनियों के मुनाफे-घाटे पर ध्यान देते थे, जो रिजर्व बैंक की तिमाही रिपोर्ट से लिए जाते थे। लेकिन अब इनकी तादाद बढ़ाकर पांच लाख कर दी गई है। इससे भी काफी फर्क पड़ा है।
अब अप्रैल महीने के आंकड़े आ गए हैं, जिनसे पता चल रहा है कि कारखानों में उत्पादन और अन्य क्षेत्र में विकास बढ़ा है। अप्रैल में कारखानों, खदानों और अन्य सेवाओं में विकास 4.1 प्रतिशत थी, जबकि मार्च में यह 2.5 प्रतिशत ही थी। इससे यह भी पता चलता है कि देश की आर्थिक गतिविधियों में तेजी आई है। सरकार को राहत मिली है। लेकिन महंगाई का एक नया दौर भारतीय उपभोक्ताओं को सताने के लिए आ पहुंचा है। दालों-तेलों और फल-सब्जियों की कीमतें स्थिर रहने के बाद अब फिर तेजी से बढ़ने लगी हैं। अगर मानसून की बारिश ने साथ नहीं दिया, तो इसका सीधा असर अर्थव्यवस्था और फिर जीडीपी पर पड़ेगा।
कृषि क्षेत्र के विकास की दर देश के भविष्य का निर्धारण करेगी, क्योंकि देश की आधी आबादी आज भी उसी पर निर्भर है। दूसरी ओर, महंगाई विकास की गति को धीमा कर सकती है। महंगाई में आधे प्रतिशत की बढ़ोतरी जीडीपी विकास की दर में उतनी ही कटौती कर सकती है।आंकड़े तो आंकड़े ही होते हैं। तरक्की की तस्वीर तो खेत-खलिहानों से लेकर महानगरों तक दिखनी चाहिए।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क 9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com