राकेश दुबे@प्रतिदिन। सरकार ने स्वीकार कर लिया है कि जाति जनगणना रिपोर्ट में कुल ८,१९,५८३१४ (आठ करोड़, उन्नीस लाख, अठावन हजार तीन सौ चौदह) गलतियां हैं, जिनमें से 6 करोड़ 73 लाख ठीक की जा चुकी हैं, लेकिन 1 करोड़ 46 लाख गलतियां अब भी बाकी हैं। जब तक इन्हें ठीक नहीं कर लिया जाता तब तक रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की जा सकती।
इस वृहत विवरण से इतना तो स्पष्ट हो ही जाता है कि बिहार विधानसभा चुनाव संपन्न होने तक गलतियां दुरुस्त करने का काम पूरा नहीं होने वाला। लेकिन इस सूरते हाल ने सरकार को कई अन्य फायदे उठाने की स्थिति में ला दिया है, जिससे उसे चूकना नहीं चाहिए। केंद्र सरकार ने इस धारणा का खंडन किया है कि वह तथ्यों को दबाने के लिए जाति जनगणना रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं कर रही।
संसार में और कहीं भी किसी सरकारी कामकाज में इतने बड़े स्तर पर और इतनी बड़ी मात्रा में गलतियां होने की बात ध्यान में नहीं आती। ऐसे में पहला काम तो सरकार यह कर सकती है कि इस उपलब्धि को जल्द से जल्द अपने नाम करके इसे पेटेंट करा ले। गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रेकॉर्ड्स में दर्ज होने के लिए भी यह विवरण भेजा जा सकता है कि आज से पहले किसी भी सरकार ने इतनी ज्यादा गलतियों की बात कबूल नहीं की।
लेकिन अब, जब सरकार ने यह साहस कर ही लिया है तो उसे सिर्फ यह बताकर नहीं रह जाना चाहिए कि राज्य सरकारें इन्हें दुरुस्त करने में जुटी हैं। उसे बताना चाहिए कि गलतियों की प्रकृति क्या है। क्या वे तथ्यात्मक गलतियां हैं? किसी की जाति गलत लिखी गई है, या पता गलत लिखा गया है? अगर हां, तो ये गलतियां पकड़ में कैसे आईं और इन्हें ठीक कैसे किया जा रहा है? क्या लोगों ने इन गलतियों की शिकायत दर्ज कराई है? और यह भी कि क्या इन्हें जांचने और सही करने के लिए कोई और जनगणना कराई जाएगी?
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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