राकेश दुबे@प्रतिदिन। पुणे स्थित भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान (एफटीआइआइ) की संचालन परिषद का अध्यक्ष टीवी अभिनेता और भाजपा के सदस्य गजेंद्र चौहान को बनाए जाने से विवाद उठा है। एफटीआइआइ सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के तहत आने वाला एक स्वायत्त संस्थान है। चौहान ने पिछले वर्ष लोकसभा चुनावों में पार्टी का प्रचार भी किया।
उनकी योग्यता को लेकर सवाल उठाने वाले और उनकी नियुक्ति के खिलाफ हड़ताल कर रहे छात्रों को हैरानी इस बात की है कि जिस संस्थान के अध्यक्ष कभी अंतरराष्ट्रीय ख्याति के अडूर गोपालकृष्णन, मृणाल सेन, गिरीश करनाड, यूआर अनंतमूर्ति और श्याम बेनेगल जैसी प्रतिभाएं रहीं, उस पद को अब एक ऐसे टीवी अभिनेता सुशोभित करेंगे जो भाजपा के कार्यकर्ता हैं और जिन्होंने ‘महाभारत’ धारावाहिक में अभिनय के सिवा कोई उल्लेखनीय काम फिल्म या टेलीविजन की दुनिया में नहीं किया है।
किसी का विरोध केवल भाजपाई या संघी होने के कारण हो रहा है ऐसा कहना इसलिए गलत है क्योंकि भाजपा का सांसद रहते 2001 में विनोद खन्ना को अध्यक्ष बनाए जाने का विरोध नहीं हुआ था। विनोद खन्ना की योग्यता संदिग्ध नहीं थी। चौहान की नियुक्ति का विरोध केवल छात्र नहीं कर रहे, बल्कि फिल्म जगत के कई बड़े नाम और अलग-अलग दलों के कम से कम चार सांसद भी विरोध जता चुके हैं।
दरअसल, कलाओं और ज्ञान-विज्ञान की संस्थाओं में नवनियुक्त प्रमुखों और सदस्यों के अब तक के बयानों से यह भी संदेश गया है कि कोई फिल्म, कलाकृति, रचना, इतिहास या शिक्षा उसी तरह होनी चाहिए जिस तरह वे चाहते और सही समझते हैं, ऐसा संदेश सही नहीं है । अगर ऐसा होने लका तो अवैज्ञानिक, अंधविश्वासी और रूढ़िवादी विचारों से इस देश को उबारने की पांच-छह दशकों की सारी कोशिशें फिजूल साबित हो जाएँगी।
इससे पहले भीष्म पितामह की भूमिका निभाने वाले मुकेश खन्ना को चिल्ड्रन्स फिल्म सोसाइटी का प्रमुख बना दिया गया था, जो भाजपा के लिए चुनाव प्रचार कर चुके हैं। इसी तरह कुछ महीने पहले पहलाज निहलानी को फिल्म सेंसर बोर्ड (सेंट्रल बोर्ड आॅफ फिल्म सर्टिफिकेशन आॅफ इंडिया) का प्रमुख बनाए जाने पर विवाद हुआ था। पता नहीं यह किस तरह की राजनीति है, जो किसी विचार धारा बेहतर और कमतर मे आंकती है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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