नई दिल्ली। LIC में 10 हजार करोड़ का घोटाला उजागर हुआ है। जनता से जुटाया गया पैदा अधिकारियों ने कमीशन के लालच में महंगे शेयरों को खरीदने में लगा दिया, जिसमें कोई लाभ नहीं होगा। ना LIC को लाभ मिलेगा और ना ही उपभोक्ताओं को, उल्टा नुक्सान होने की संभावनाएं बहुत हैं। सरकार इसकी गुपचुप जांच कर रही है।
राइट टु इंफॉर्मेशन एक्ट के तहत दायर एप्लिकेशन के जवाब में फाइनेंस मिनिस्ट्री ने कहा है कि इस मामले की जांच चल रही है। एक बड़े सरकारी अधिकारी ने बताया कि एलआईसी की ओर से 10,000 करोड़ रुपये के इनवेस्टमेंट्स की जांच चल रही है। सरकारी लाइफ इंश्योरेंस कंपनी हर साल शेयरों में करीब 50,000 करोड़ रुपये लगाती है।
फाइनेंस मिनिस्ट्री ने इस मामले में आरटीआई एक्ट, 2005 के सेक्शन 8 (1) (एच) के तहत और जानकारी देने से मना कर दिया है। इस सेक्शन में कहा गया है कि अगर किसी सूचना से जांच के प्रभावित होने का डर हो तो, उसे रोका जा सकता है।
अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया, 'एलआईसी की पिछले साल की बोर्ड मीटिंग में पहली बार इस मामले पर चर्चा हुई थी। आरोप है कि कंपनी के कुछ अधिकारियों ने कथित तौर पर ब्रोकर्स के साथ मिलीभगत करके एक खास शेयर के लिए प्राइस बैंड फिक्स किया और उसके बाद यह सूचना ब्रोकर्स को लीक कर दी गई, जिन्होंने इस आधार पर शेयर में पोजीशन ली।' आरोप है कि जब एलआईसी ने प्राइस बैंड की अधिकतम कीमत पर शेयर खरीदे तो इससे ब्रोकर्स को फायदा हुआ, जिसे उन्होंने कथित तौर पर कंपनी के अधिकारियों के साथ बांटा। एक अन्य अधिकारी ने बताया कि एलआईसी की ओर से कुछ ऐसे मामले भी देखे गए हैं, जहां कंपनी ने कम दाम पर शेयर बेचे और कुछ ही दिनों बाद अधिक कीमत पर उनकी खरीदारी की। अधिकारी ने बताया कि फाइनेंस मिनिस्ट्री ने कथित आरोपों पर एलआईसी और उसकी सब्सिडियरीज से जानकारी मांगी है।
वहीं, एलआईसी के एक अफसर ने कहा कि सरकार को कंपनी के इनवेस्टमेंट के फैसलों में प्रक्रिया से जुड़ी कुछ गलतियों का पता चला है। उन्होंने बताया, 'इस मामले पर इंश्योरेंस रेगुलेटर इरडा से भी बात हुई है। उसने भी इन गलतियों के बारे में ध्यान दिलाया था। हालांकि, इसमें मिलीभगत का आरोप बेबुनियाद है।' एलआईसी 15 लाख करोड़ रुपये के एसेट्स मैनेज करती है। पिछले साल उसने शेयर बेचकर 22,000 करोड़ रुपये का प्रॉफिट कमाया था।