जबलपुर। धान घोटाले के व्हिसल ब्लोअर सुरेंद्र कुमार शाक्य की संदिग्ध मौत के बाद थाना प्रभारी शोभना मिश्रा ने 10 दिन तक जांच के नाम पर मामले को भटकाने का प्रयास किया, लेकिन जब दवाब कम नहीं हुआ तो 11वें दिन सुसाइड नोट में दर्ज 10 में से 4 लोगों के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज कर लिया लेकिन एफआईआर की कॉपी थाने में रखने के बजाए अपने साथ लेकर चलीं गईं।
थाना प्रभारी शोभना मिश्रा ने सबसे पहले सुसाइड नोट को फर्जी माना और सागर की फॉरेंसिक लैब में जांच के लिए भेजा दिया, अभी जांच रिपोर्ट आई नहीं है लेकिन 4 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली। सवाल यह है कि शेष 6 लोगों को क्यों छोड़ दिया गया। सभी आरोपी वेयरहाउस संचालक हैं। इस मामले में एक मंत्री पर भी मामले को दबाने का आरोप लगता रहा है।
धान घोटाले को उजागर करने वाले शहपुरा वेयर हाउस के सुरेंद्र कुमार शाक्य का शव 29 जुलाई को उनके आवास से संदिग्ध अवस्था में मिला था। मौके से पुलिस को दो पेज का सुसाइड नोट मिला था, जिसमें आत्महत्या के लिए जिम्मेदार लोगों का नाम लिखा हुआ था।
पुलिस की भूमिका पर लगातार सवाल उठने के बाद आईजी श्री राव ने खुद मामले को संज्ञान में लेते हुए सभी अधिकारियों को फटकार लगाई। पुलिस के उच्च अधिकारियों के दबाव में शहपुरा थाना प्रभारी शोभना मिश्रा ने शनिवार की देर रात सुरेन्द्र कुमार शाक्य की मौत के सुसाइड नोट के आधार पर संदीप सोनी, नरेन्द्र तोमर, विमल जैन और मोनू जैन के खिलाफ धारा 306 का अपराध दर्ज किया। संदीप सोनी और नरेन्द्र तोमर पर इसी मामले को लेकर पूर्व में धारा 406 का अपराध दर्ज हो चुका है।
एफआईआर कॉपी साथ ले गईं टीआई
बताया जाता है कि शनिवार की देर रात तक रिपोर्ट लिखने के बाद एफआईआर की कॉपी थाने में रखने की बजाय थाना प्रभारी अपने साथ लेकर रवाना हो गईं। हालांकि इस मामले में कोई कुछ खुलकर नहीं बोल रहा है।
कौन से 6 नाम छिपाए गए
उल्लेखनीय है कि 29 जुलाई को सुरेन्द्र कुमार शाक्य की मौत के बाद पुलिस ने आधिकारिक तौर पर सुसाइड नोट मिलने की बात कहते हुए उसमें 10 लोगों के नाम लिखे होने की बात कही थी। लेकिन एफआईआर में सिर्फ चार लोगों के खिलाफ ही मामला दर्ज किया गया। अब सवाल ये उठ रहा है कि पुलिस ने कौन से 6 लोगों के नाम उजागर नहीं किए हैं।
अनसुलझे सवाल
पुलिस ने सुसाइड नोट के आधार पर चार लोगों को आरोपी बना लिया है लेकिन अभी सुसाइड नोट की फॉरेंसिक रिपोर्ट आना बाकी है। अगर जांच में हैंडराइटिंग का मिलान नहीं हुआ तो लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद आरोपी बनाए गए लोगों के नाम एफआईआर से हटाए जाएंगे।
10 दिन तक पुलिस जांच का हवाला देकर किसी के नाम उजागर नहीं कर रही थी, लेकिन 11 वें दिन अचानक 4 लोगों के खिलाफ मामला क्यों दर्ज कर लिया गया। जानकार बताते हैं कि पुलिस चाहती तो शुरुआती जांच के बाद तीसरे-चौथे दिन सुसाइड नोट के आधार पर मामला दर्ज कर सकती थी लेकिन ऐसा नहीं किया गया।