भोपाल। मप्र में एक साल के भीतर 14000 नवजात शिशुओं एवं 1200 गर्भवती माताओं की मौत हुई है। यह आंकड़े स्वास्थ्य विभाग के हैं। अफसर अब अपने आंकड़ों को यहां वहां बिखेरकर जिम्मेदारियों से बचने का प्रयास कर रहे हैं।
पिछले साल अप्रैल से लेकर इस साल मार्च तक करीब 47 हजार महिलाएं गर्भवती हुईं। निजी व सरकारी अस्पतालों में उनका पंजीयन कर जांच की गई। सब कुछ निगरानी में चलता रहा। इनमें 45 हजार महिलाओं की डिलेवरी अस्पताल व बाकी की घरों में हुई। इसमें से 1200 माताओं की मौत हो गई, जबकि 14000 नवजात शिशुओं के प्राण बचाए नहीं जा सके।
अफसरों का बेतुका तर्क
इस संबंध में स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने बताया कि भोपाल में जिन माताओं की मौत हो रही है उनमें करीब 25 फीसदी ही भोपाल की हैं, बाकी अन्य जिलों की हैं। इस साल अप्रैल से जून तक 27 महिलाओं की मौत भोपाल के अलग-अलग अस्पतालों में हुई है। इनमें 20 आसपास के जिलों की हैं।
एएनसी कवरेज व संस्थागत प्रसव ज्यादा होने पर भी ये हाल
स्वास्थ्य विभाग का दावा है कि 61 फीसदी महिलाओं की गर्भावस्था की पहली तिमाही में जांच शुरू हो जाती है। दूसरी तिमाही में और महिलाएं अस्पताल पहुंचती हैं। इनका प्रसव भी अस्पताल में ही होता है। इसके अलावा जो आखिरी तिमाही में अस्पताल आती हैं। इनमें 86 फीसदी महिलाओं का प्रसव अस्पताल में हो रहा है। इसके बाद भी हर साल करीब 14 हजार बच्चों व 1200 माताओं की मौत हो रही है।
इनका कहना है
आसपास के जिलों से रेफर होकर आने वाली महिलाओं की मौत ज्यादा होती है। भोपाल शहर में रहने वाली गर्भवती माताओं की मौत का प्रतिशत बहुत कम है।
डॉ. वीणा सिन्हा, सीएमएचओ, भोपाल