भोपाल। प्राइवेट स्कूलों में मनमानी फीस पर रोक लगाने वाली गाइडलाइन आज तक तैयार नहीं हो पाई है। सरकार पर शिक्षा माफिया का दवाब साफ दिखाई दे रहा है। हाईकोर्ट में मामला होने के बावजूद सरकार इसे टालती जा रही है। एक बार फिर 6 हफ्ते का समय मांग लिया गया है।
पूरे मप्र में शिक्षा सत्र शुरू होने से पहले ही इसे लेकर हंगामा हो गया था। सरकार ने दवाब में आकर एक गाइडलाइन भी बनाई थी परंतु वो पूरी तरह से स्कूल संचालकों के फेवर में थी। हाईकोर्ट में याचिका लगी तो उसे अनुचित पाया गया और रद्द हो गई। हाईकोर्ट ने नई गाइडलाइन बनाने के आदेश दिए।
शुक्रवार को न्यायमूर्ति एसके सेठ व जस्टिस राजेन्द्र महाजन की डिवीजन बेंच में मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान जनहित याचिकाकर्ता नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच के प्रांताध्यक्ष डॉ.पीजी नाजपांडे की ओर से अधिवक्ता दिनेश उपाध्याय ने पक्ष रखा।
अपील भी हो चुकी खारिज
जनहित याचिकाकर्ता डॉ. नाजपांडे ने दलील दी कि राज्य शासन ने स्कूल फीस नियंत्रण के संबंध में नियम न बनाते हुए महज गाइडलाइन बनाकर कर्तव्य की इतिश्री कर ली थी। इसे अनुचित पाते हुए हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच पहले ही रद्द कर चुकी है। उस आदेश के खिलाफ राज्य शासन ने अपील दायर की थी, वह भी खारिज हो चुकी है। लिहाजा, अब राज्य को नई गाइडलाइन बनाकर हाईकोर्ट के सामने प्रस्तुत करनी चाहिए।
प्रक्रिया जारी, थोड़ा समय लगेगा
बहस के दौरान राज्य की ओर से शासकीय अधिवक्ता स्वप्निल गांगुली खड़े हुए। उन्होंने बताया कि हाईकोर्ट के दिशा-निर्देशों के पालन में पुरानी गाइडलाइन वापस लेकर स्कूल फीस नियंत्रण विषयक ठोस नियम बनाने की प्रक्रिया जारी है। इसे पूरा होने में थोड़ा वक्त लगेगा। लिहाजा, कम से कम 6 सप्ताह की मोहलत और दी जाए। कोर्ट ने यह निवेदन मंजूर कर लिया।
निजी स्कूलों की लूट का विरोध
जनहित याचिकाकर्ता का कहना है कि राज्य के निजी/सीबीएसई स्कूल छात्रों-अभिभावकों पर दबाव बनाकर फीस के अलावा तरह-तरह के मद निर्धारित कर लूट मचाए हुए हैं। हर साल पाठ्यक्रम की किताबें व ड्रेस विशेष दुकान से खरीदने के लिए कहा जाता है। यही नहीं पुस्तकें भी हर साल बदल दी जाती हैं। यह सब मुनाफाखोरी के चक्कर में किया जाता है।
मनमानी थी गाइडलाइन
जनहित याचिकाकर्ता का कहना है कि राज्य ने हाईकोर्ट को बार-बार नियम बनाने का भरोसा दिलाया था। लेकिन बाद में सिर्फ कागजी गाइडलाइन बनाकर भरमाने की कोशिश की गई। हालांकि वह चालाकी काम नहीं आई। जो गाइडलाइन बनाई गई थी उसके तहत निजी स्कूलों को हर साल 10 फीसदी तक फीस में इजाफे की शक्ति प्रदान कर दी गई थी, इससे अधिक वृद्धि के लिए संभागीय स्तर पर कमेटी से अनुमति लेने की शर्त नाटकबाजी बतौर लगाई गई थी।