मनोज सोनी/घुवारा/छतरपुर। यूं तो मप्र के नगरीय निकाय चुनावों में भाजपा ने 8 सीटों पर कब्जा जमाया है, लेकिन इस बड़ी जीत पर घुवारा की हार भाजपा के माथे पर बड़ा कलंक कहा जाना चाहिए। बड़ा कलंक क्यों इसके कई कारण हैं, पढ़िए:
- भाजपा ने यहां राशन माफिया की पत्नी को प्रत्याशी बनाया।
- माफिया का भाजपा से कोई पुराना रिश्ता नहीं था।
- खुला आरोप लगा कि माफिया टिकिट खरीदकर लाया है।
- प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान और अरविंद मेनन ने पूरी ताकत झोंकी।
- मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बड़ी सभा को संबोधित किया।
- 15 वार्डों के लिए 15 विधायक, 4 मंत्री, 2 पूर्वमंत्री, 5 सांसद और तमाम नेताओं की इतनी बड़ी फौज काम पर लगाई कि एक आदमी के दरवाजे पर वोट मांगने रोज 5-5 दिग्गज नेता खड़े रहते थे।
- सूत्रसंचालकों को लगा कि इससे लहर चलेगी, लेकिन इसी से सबकुछ डूब गया।
भाजपा और कांग्रेस के टोटल से ज्यादा निर्दलीय के वोट
महज 8400 मतदाताओं वाली इस नगर परिषद में अध्यक्ष पद के चार उम्मीदवार मैदान में थे जिसमें से कांग्रेस को 223, भाजपा को 1540 और निर्दलीय प्रत्याशी को 4635 मत मिले, इस प्रकार निर्दलीय प्रत्याशी अरूणा राजे बुन्देला ने भाजपा को 3095 मतों से परास्त कर दिया। इस अप्रत्याशित जीत का अंदाजा तो शुरू से ही लगाया जा रहा था लेकिन भाजपा और कांग्रेस इस पर यकीन नहीं कर रही थी।
राशन माफिया को दी थी भाजपा ने टिकिट
घुवारा चुनाव में पूर्व नगर परिषद अध्यक्ष पप्पू राय सहित कई दावेदार थे लेकिन भाजपा ने अनारक्षित महिला के लिए अध्यक्ष का पद आरक्षित होने के बाद भी छतरपुर जिले के सबसे बडे राशन माफिया जाहर सिंह घोषी की पत्नी श्रीमती गुड्डी सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया था। सूत्र बताते हैं कि न तो जाहर सिंह और न ही उनकी पत्नी गुड्डी सिंह ने कभी भाजपा के लिए काम किया उसके बाद भी भाजपा के दिग्गज नेताओं ने गुड्डी सिंह को उम्मीदवार बनाया। जिसका खामियाजा भाजपा को भुगतना पडा है।
टिकिट के लिए हुआ था मोटा लेनदेन
खबर तो यहां तक है कि राशन माफिया जाहर सिंह ने अपनी पत्नी को टिकिट दिलाने के लिए मोटी रकम खर्च की है और चुनाव के दौरान भी करोडों रूपये खर्च किये उसके बाद भी धनबल पर जनबल भारी पडा तथा भाजपा को हार का सामना करना पडा।
कांग्रेस से टिकिट मांगा था अरुणा ने
जिन अरूणा राजे ने भाजपा को करारी शिकस्त दी है उन्होंने कांग्रेस से टिकिट मांगी थी और अरूणा राजे के देवर राणा शंकर प्रताप सिंह बुन्देला ने अपनी पत्नी के लिए भाजपा से टिकिट मांगी थी। पर न तो इस परिवार को भाजपा ने टिकिट दी और न कांग्रेस ने। कांग्रेस ने संभवतः सबसे कमजोर प्रत्याशी मैदान में उतारा था और जैन वोटों के सहारे जैन मनोज रश्मि मस्तांई को अपना उम्मीदवार बनाया था।
15 वार्डों के लिए 15 विधायक, 4 मंत्री, 2 पूर्वमंत्री, 5 सांसद
घुवारा नगर परिषद अध्यक्ष का चुनाव जीतने के लिए भाजपा ने अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं की भारी भरकम फौज यहां तैनात की थी। 15 वार्डों वाली इस नगर परिषद के प्रत्येक वार्ड में 1-1 विधायक को प्रभारी बनाया गया था 4 मंत्री लगातार यहां डेरा डाले रहे, छतरपुर के अलावा टीकमगढ, सागर, दमोह, पन्ना के जिलाध्यक्ष, युवा मोर्चा के जिलाध्यक्ष, महिला मोर्चा की जिलाध्यक्ष, 20 पूर्व विधायक, 2 पूर्व मंत्री और 5 सांसद यहां की गलियों को रौंदते देखे गये इसके अलावा मोर्चा और प्रकोष्ठों के छोटे-बडे हजारों नेता मतदाताओं की मान-मनौब्बल में जुटे रहे।
नंदकुमार सिंह चौहान और मेनन ने भी लगाई थी ताकत
भारतीय जनता पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष नंद कुमार सिंह चौहान एवं प्रदेश संगठन महामंत्री अरविन्द मेनन ने भी वोटरों को रूझाने का प्रयास किया लेकिन नतीजा सिफर निकला। इसके पीछे कारण केवल एक है कि भाजपा ने अपने मद में चूर होकर राशन माफिया को टिकिट दी ऊपर से टिकिट बेंचने के भी गंभीर आरोप लगे, इसके अलावा छतरपुर जिले के पूर्व संगठन मंत्री और वर्तमान संगठन मंत्री भी लगातार 15 दिन घुवारा में डेरा जमाये रहे।
वार्डों में भी हारी भाजपा
घुवारा नगर परिषद के चुनाव में भाजपा की करारी शिकस्त का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वार्डों में पार्षद भी चुनाव हार गये यहां 15 वार्डों में से केवल 5 वार्डों में भाजपा के पार्षद चुनाव जीते, 6 वार्ड में कांग्रेस के पार्षद और 4 वार्डों में निर्दलीय प्रत्याषियों ने जीत दर्ज कराई। यहां 15 में से 8 वार्ड अनारक्षित थे लेकिन भाजपा ने ओबीसी कार्ड खेलकर केवल 1 वार्ड में अनारक्षित उम्मीदवार उतारा था।