जबलपुर। सरकार भले ही हरदा रेल हादसे का कारण बाढ़ या प्राकृतिक आपदा बताए लेकिन इस हादसे के पीछे गंभीर तकनीकी चूक स्पष्ट दिखाई दे रही है। अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि बाढ़ का पानी पुलिस के ऊपर आया या मिट्टी के धंस जाने से पटरियां पानी में समा गईं। यदि पेट्रोलिंग होती तो हादसे को रोका जा सकता था।
रेलवे के अधिकारियों के बयान ही उन्हें सवालों के घेरे में खड़ा कर रहे हैं। अभी तक जो बयान आए हैं उनके मुताबिक ट्रैक के ऊपर बाढ़ का पानी आने की वजह से ट्रैक की मिट्टी धंस गई थी लेकिन सूत्र बताते हैं कि बारिश का पानी पुलिया से तकरीबन 3 फीट नीचे था। सबसे बड़ा सवाल है कि यदि बाढ़ का पानी पुलिया पर आया तो पेट्रोलिंग के दौरान इस बात पर क्यों गौर नहीं किया गया। रेलवे सूत्रों के मुताबिक इस मामले में पेट्रोलिंग में ही लापरवाही सामने आई है।
नियम के मुताबिक ये होता हैः
दो स्टेशनों के बीच हर एक किमी की दूरी पर एक ट्रैकमैन होता है जो ट्रैक पर नजर रखता है।
यह हर स्टेशन में तैनात पीडब्ल्यूआईडी के निर्देशन में काम करता है।
ट्रैकमैन ट्रेन आने से पहले ट्रैक को ओके कर स्टेशन पर मैसेज देता है। इसके बाद ही ट्रेन निकाली जाती है।
यदि किसी वजह से उससे संपर्क नहीं हो सका तो ट्रेनों को कॉशन ऑर्डर (धीमी गति से) जारी कर निकाला जाता है।
चेकिंग हुई होती तो ये होता
मौसम खराब होने के बाद यदि ट्रैकमैन ने ट्रैक चेक किया होता तो वह स्टेशन पर जानकारी दे देता कि ट्रैक के ऊपर पानी भरा है।
ट्रैक के नीचे मिट्टी धंसने की बात भी अधिकारियों को पहले ही पता चल गई होता, जिसके बाद दो ट्रेनों को तो वहां से नहीं निकाला जाता।
नोटः खिरकिया स्टेशन पर जिस पीडब्ल्यूआई को तैनात किया, उसने एक साल से यह पद संभाला ही नहीं है।