शहडोल। आजाद अध्यापक संघ मध्यप्रदेश के आह्वान पर पूरे प्रदेश में चलाए जा रहे आजाद रथ का 27 अगस्त 2015 को शहडोल में आगमन हुआ जिसकी अगुवाई शहडोल की संभाग व जिले की इकाई ने पूरे उत्साह के साथ किया जिसमें आजाद अध्यापक संघ के पदाधिकारियों और अध्यापकों ने बड़ी संख्या में भाग लिया।
सबसे पहले आजाद रथ का जयस्तम्भ चौक पर स्वागत हुआ, जहां पर अध्यापकों ने एक आमसभा की और बहुत से अध्यापकों ने अपने विचार व्यक्त किए। अध्यापकों ने विचार व्यक्त करते हुए सरकार पर आरोप लगाया कि जो वेतन शिक्षकों को 2006 में दिया जा चुका है उस वेतन को सरकार 2017 में देकर समान कार्य समान वेतन देने का ढिंढोरा पीट रही है।
अंतरिम राहत के आदेश में कहीं भी शिक्षक संवर्ग के समान वेतन दिए जाने का उल्लेख नहीं किया गया है। अंतरिम राहत के आदेश में उस वेतनमान को दिए जाने का लेख किया है जो शिक्षक संवर्ग को पहले ही 2006 में दिया जा चुका है। यदि सरकार की मंशा साफ होती तो सरकार आदेश में यह स्पष्ट करती कि अध्यापक संवर्ग को 2017 में वह वेतन दिया जाएगा जो षिक्षक संवर्ग को देय होगा। परंतु आदेष में ऐसा कहीं भी स्पष्ट नहीं किया गया है। उल्टा आदेश में वित्त विभाग की सहमति का पेंच फंसा दिया गया है।
एक अन्य अध्यापक ने कहा कि सरकार से हम ऐसा कुछ नहीं मांग रहे हैं, जिसे पूरा करना सरकार के लिए असंभव है।सरकार वेतन अंतर के दो किष्त दे चुकी है।तीसरा किष्त उसे स्वतः ही सितम्बर 2015 से देना है।इस प्रकार वेतन अंतर का 75 प्रतिषत सरकार के अनुसार सितम्बर 2015 तक पूरा हो जाएगा। हम सरकार से कह रहे हैं कि वह हमें बची हुई एक और किश्त को तीसरे किष्त के साथ पूरा करे और साथ में शिक्षक संवर्ग को 2006 में दिए गए वेतनमान पर सितम्बर 2015 में ही समायोजन कर दे। जब सरकार अंतर का 75 प्रतिशत दे चुकी तो फिर सरकार के लिए यह असंभव नहीं कि वह 25 प्रतिशत की एक अतिरिक्त किश्त न दे दे। यदि सरकार वास्तव में अध्यापकों का हित चाहती है तो सातवां वेतन लगने की तारीख यानी 1 जनवरी 2016 के पूर्व पूर्ण छठावेतन देना ही होगा अन्यथा अध्यापक और आमजन तक स्पष्ट तौर पर यह संकेत जाएगा कि सरकार अध्यापकों का हित नहीं चाहती और पूर्व की तरह अब भी धोखा और छल कर रही है।
एक अध्यापक ने आरोप लगाया कि आजादी के 68-69 वर्षों बाद भी षिक्षा व्यवस्था की बदहाल स्थिति सरकारों की मंषा पर प्रष्नचिन्ह खड़ा करता है और इसलिए हो रहा है क्योंकि सरकारें स्कूलों की स्थिति में वास्तव में सुधार के बजाय स्कूलों को राजनीति का माध्यम बना रही है।एक ही स्कूल में एकसमान योग्यता , भर्ती के कठिन मापदण्डों और समान कार्यों के बावजूद अलग-अलग पदनाम , वेतन और सुविधाएं देकर हमारी सरकारें आखिर क्या हासिल करना चाहती हैं?
मजदूर की मजदूरी से भी कम पर षिक्षकों की अस्थायी भर्ती करना फिर उन्हें नियमित करने में एक लम्बे समय तक इंतजार कराना।आन्दोलन, धरना प्रदर्षन और रैलियों के लिए उकसाना यह सब वोट बैंक की राजनीति है।और इन्हीं सब कारणों से सरकारी स्कूली षिक्षा व्यवस्था की हालत बदतर हुई है।षिक्षकों को इन सब के लिए जिम्मेदार बनाकर बदनाम किए जाने की साजिष रची जाती है।जबकि षिक्षक तो वही सब करते हैं जो सरकार उनसे करवाती है।इसलिए यदि वास्तव में षिक्षा को बदहाल स्थिति से उबारना है तो विभिन्न प्रकार के पदनामों का एकीकरण सबका षिक्षक संवर्ग में संविलियन कर समान वेतनमान और अन्य सुविधाएं देनी ही होगी।
आम सभा के उपरांत आजाद रथ के साथ अध्यापकों ने जय स्तम्भ चैक से बुढ़ार चैक तक एक विषाल बाइक रैली निकाली और प्रांतीय और स्थानीय मांगों का ज्ञापन कलेक्टर षहडोल को सौपा ।इस कार्यक्रम में षहडोल के अध्यापकों के साथ-साथ नजदीकी जिला अनूपपुर व उमरिया के भी अध्यापक पदाधिकारियों ने हिस्सा लिया।