भोपाल। बिहार एवं उत्तरप्रदेश में 598 मौतों का जिम्मेदार जापानी बुखार का मच्छर अब मप्र में पहुंच गया है। इंदौर के महू इलाके में इसका एक मरीज मिला है। यह मात्र 7 साल की एक मासूम बच्ची है। इसका इलाज उपलब्ध है परंतु परेशान करने वाली बात यह है कि ज्यादातर लैब में इसकी जांच ही नहीं हो पाती। ऐसे में पीड़ित की मौत हो जाती है।
दरसअल, इंदौर के नज़दीक महू की रहने वाली खुशबू रावत (7) का कई दिनों से चौइथराम अस्पताल में इलाज चल रहा था। उसी दौरान बच्ची में जापानी इनसेफेलाइटिस बीमारी के लक्षण दिखे। जब उसका ब्लड सैंपल पुणे की वायरोलॉजी लैब में भेजा गया, तो रिपोर्ट पॉजिटिव आई। फिलहाल बच्ची को शहर के एमवायएच में भर्ती करा दिया गया है। डॉक्टर इस बुखार को प्रदेश का पहला केस मान रहे हैं।
क्या है जापानी बुखार
जापानी बुखार का असली नाम (जैपनीज इंसेफिलटीज) है। डॉक्टरों के मुताबिक, अगर कोई मच्छर सुअर को काट ले और उसके बाद वही मच्छर किसी इंसान को काटे, तो उसके खून में जापानी इंसेफेलाइटिस के वायरस आ जाते हैं। डॉक्टर इसे गंभीर बीमारी मानते हैं। वहीं, छोटे शहरों में अच्छे लैब न होने की वजह से इसकी पुष्टि भी नहीं हो पाती। इस बुखार से पीड़ित का समय पर इलाज ना हो तो मौत हो जाती है।
जापानी बुखार के लक्षण पेट में दर्द, सिरदर्द और झटके आना है। इसके अलावा लक्षणों में गर्दन में कठोरता आना, लंबी मस्तिष्क संबंधी दोष, बहरापन, भावनात्मक अंडकोष में सूजन आदि शामिल है।
ये है इलाज
ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले बच्चों को यह बीमारी अधिक होती है। शहरी क्षेत्रों में जापानी एनसेफेलाइटिस सामान्यतः नहीं होता है। जापानी एनसेफेलाइटिस के लिए भारत में इनएक्टीवेटेड माउस ब्रेन-डिराइव्ड जे ई जापानी एनसेफेलाइटिस टीका उपलब्ध है।
यूपी-बिहार में मर चुके सैंकड़ों
जापानी बुखार से उत्तरप्रदेश और बिहार में सैंकड़ों लोग मर चुके हैं। बीते दिनों ही राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने कहा था कि उत्तर प्रदेश के पूर्वी हिस्से में जापानी इन्सैफेलाइटिस (जापानी बुखार) से बच्चों की लगातार मौतें हो रही हैं, लेकिन इसे रोकने के लिए राज्य सरकार की ओर से अब तक कोई ठोस प्रयास नहीं किए गए हैं। आयोग की मानें तो इस बीमारी से मौजूदा साल में 598 बच्चों और कई लोगों की मौतें हो चुकी हैं।