राकेश दुबे प्रतिदिन। वायु प्रदूषण से पैदा हुई बीमारियों के कारण पिछले एक दशक में ३५ हजार लोगों की मौत हो चुकी है। यह आंकड़ा किसी एन जी ओ का नहीं सरकार द्वारा उपलब्ध जानकरइ में हैं गुरुवार को केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि वायु प्रदूषण की वजह से सांस और हृदय संबंधी रोगों में बढ़ोतरी हो रही है।अब तक पर्यावरण मंत्रालय यही कहता आया है कि वायु प्रदूषण से उत्पन्न होने वाले स्वास्थ्य संबंधी खतरों का कोई पक्का सबूत नहीं है।
इसके उलट विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) पिछले कुछ समय से भारत में वायु प्रदूषण को लेकर लगातार चिंता व्यक्त करता आ रहा है। उसका मानना है कि वायु प्रदूषण के कारण वक्त से पहले 88 प्रतिशत मौतें उन देशों में होती हैं, जिनकी आय का स्तर निम्न या मध्य स्तर का है। उसने चीन और भारत को सर्वाधिक वायु प्रदूषित मुल्क के रूप में चिह्नित किया है।
भारत में जो अध्ययन चल रहे हैं,उनमे बेंगलुरु के एक पीडियॉट्रिक पल्मनोलॉजिस्ट (बाल श्वसन रोग विशेषज्ञ) ने का भी एक पेपर है, जिसमें एक शहर में वाहनों के पंजीकरण और अस्पताल के ओपीडी में होने वाली भर्तियों के बीच के रिश्ते की पड़ताल की गई है। कई चिकित्सक मानते हैं कि वायु प्रदूषण भले खुद रोग न पैदा करे लेकिन वह गंभीर बीमारियों की रफ्तार बढ़ा देता है। 1990 से 2010 के बीच 'ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज' द्वारा किए गए अध्ययन में मौत के 200 से ज्यादा कारणों की पड़ताल की गई थी, जिसमें पता चला कि भारत में बाहरी सूक्ष्म कणों से होने वाली असमय सालाना मौतें छह लाख 27 हजार थीं। ये महीन कण श्वास नली को बाधित करके या रक्त प्रवाह में शामिल होकर शरीर के कई अंगों को प्रभावित करते हैं।
अभी भी ज्यादातर चिकित्सक मानते हैं कि भारत में प्रदूषक तत्वों के अलग-अलग प्रभाव को जानने के लिए हमें और ज्यादा महामारी संबंधी अध्ययनों की जरूरत पड़ेगी। अंतरराष्ट्रीय अध्ययनों पर निर्भर रहने के बजाय हमें अपनी स्टडी को बढ़ावा देना चाहिए। बहरहाल, जरूरत आंकड़ों से आतंकित होने की नहीं, प्रदूषण के खतरे को स्वीकार करते हुए उसके खिलाफ लड़ाई तेज करने की है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क 9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com