सुमेधा पुराणिक चौरसिया/इंदौर। शहर से 40 किमी दूर एक ऐसी पंचायत है, जहां सिर्फ महिलाओं की हुकूमत चलती है। आजादी के 68 साल बाद ही सही, लेकिन गांव में महिलाओं का राज है। महिला सत्ता सिर्फ कागजों पर नहीं, बल्कि हकीकत में है। महिलाओं की इस पंचायत में पुरुषों का कोई दखल नहीं है। यह प्रदेश की पहली ऐसी ग्राम पंचायत है जिसे गांव वालों ने पूर्णत: महिला पंचायत बनाकर मिसाल पेश की है। पंच से लेकर सरपंच तक सबको निर्विरोध चुनकर।
मानपुर की रामपुरिया खुर्द पंचायत प्रदेश में पहली संपूर्ण महिला पंचायत है, जो निर्विरोध चुनकर दो साल से गांव की तस्वीर बदलने में जुटी है। सरपंच मिनी मुरली नायर विज्ञान में ग्रेजुएट हैं और गांव की 'सरपंच मैडम" हैं। नर्सिंग होम में नर्स भी हैं। अंजली पटेल, संगीता गिनावा, सेफुल बाई, संगीता बिछे, जतन बाई, हीराबाई पेम, केसर बाई, शुगनबाई सहित दस महिलाएं उनकी सहयोगी हैं। खास बात यह कि यहां महिला सरपंच और पंच के पीछे पति नहीं होते, बल्कि वे खुद अपने दम पर पंचायत चलाती हैं। पंचायत के अंतर्गत रामपुरिया खुर्द और रामपुरिया बुजुर्ग दो गांव हैं, जिनकी आबादी करीब 3 हजार है।
गांव में हर कोने में हरियाली, सड़क भी बन गई
आम तौर पर असुविधाओं का रोना रोने वाले गांव के लिए यह पंचायत आदर्श हो सकती है। गांव के हर कोने में हरियाली है। सड़क बन गई है। कुटीर योजना के तहत गांवों में पक्के मकान भी बन रहे हैं। महिला पंचायत से गांव का हर व्यक्ति खुश है।
कलेक्टर महोदय नाराज हैं
सरपंच मिनी नायर का कहना है कि भाजपा की सरकार होने के बाद भी कोई हमारी बात नहीं सुन रहा। हम पंचायत को प्रदेश में उत्कृष्ट बनाना चाहते हैं, लेकिन जिला स्तर पर ही हमारी सुनवाई नहीं होती। मुख्यमंत्री ने निर्विरोध पंचायत के लिए 5 लाख रुपए का सम्मान घोषित किया है।
पंचायत ने तीन बार प्रस्ताव भेजा, लेकिन जिला स्तर पर जाकर रुक गया। हर साल 15 अगस्त पर निर्विरोध चुनी पंचायत को सम्मान दिया जाता है, लेकिन हमारी पंचायत को नहीं दिया जा रहा। हमारी पंचायत निर्विरोध होने के साथ पहली महिला पंचायत भी है। महिला होने के कारण हमें जिला स्तर पर महत्व नहीं दिया जाता, इसका बहुत दुख है।
क्योंकि हमारा गांव सचमुच आजाद है
गांव के पूर्व सरपंच दिनेश पटेल, नंदकिशोर पटेल और बुजुर्ग ग्रामीण नंदूभैया बताते हैं कि महिलाओं के हाथ में गांव की सत्ता होने से हम काफी खुश हैं। हमारा गांव असल में आजाद है, क्योंकि गांव की महिलाओं को किसी तरह की रोक-टोक नहीं। पंचायत की इन्हीं महिलाओं के कारण गांव की दूसरी महिलाएं जागरूक हो रही हैं और चार दीवारी से बाहर निकलकर अपनी पहचान बना रही हैं।
- पत्रकार सुमेधा पुराणिक चौरसिया नईदुनिया इंदौर को सेवाएं देतीं हैं।