हरदा जैसा हादसा फिर कैसे न हो ?

राकेश दुबे @प्रतिदिन। हरदा के करीब हुई रेल दुर्घटना का तात्कालिक कारण ट्रैक के नीचे की मिट्टी का बाढ़ के जल प्रवाह में बहना और ट्रैक का धंस जाना बताया जा रहा है। रेलवे में ट्रैकों की नियमित जांच की ठोस व्यवस्था है और मानसून-पूर्व पेट्रोलिंग के ठोस निर्देश भी हैं। हर मानसून से पहले न सिर्फ देश भर के रेलवे पुलों-पुलिया की जांच-पड़ताल करने की, बल्कि बंद या अवरुद्ध नालों की सफाई के भी साफ नियम हैं।  रेल कर्मचारियों के अनुसार रेल महकमा कर्मचारियों की भारी कमी का शिकार है और इसका उसके संचालन पर असर पड़ रहा है।

अंग्रेजों ने १९४७  में जब रेलवे हमें सौंपा था, तब उसके कर्मचारियों की संख्या करीब १० लाख थी। पिछले ६८ वर्षों में रेलवे का कितना विस्तार हुआ है, कितनी सारी ट्रेनें बढ़ी हैं, उनमें सफर करने वाले लोगों की संख्या कितनी बढ़ी है, इस पर कोई ध्यान नहीं देता। आज १२००० से ज्यादा ट्रेनों में रोजाना सवा दो करोड़ से अधिक लोग सफर करते हैं। लेकिन विभाग पर दबाव है कि वह अपने करीब १४ लाख नियमित-अनियमित कर्मचारियों की संख्या को घटाकर १२ लाख के नीचे ले आए। आठ घंटे की कार्य अवधि के लिहाज से चौबीस घंटे में आपको एक-एक जगह पर तीन-तीन आदमी चाहिए। इसी अनुपात में गैंगमैन (ट्रैकमैन), कीमैन, पेट्रोलमैन, ड्राइवर, इंजीनियर आदि चाहिए। बाढ़, भूकंप आदि कुदरती आपदाओं के अलावा रेलवे ट्रैकों को आजकल एक और चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। देश भर में तरह-तरह के विकास के काम हो रहे हैं। और इसमें सरकारी व निजी, दोनों तरह के निर्माण कार्य शामिल हैं। आजकल रेलवे लाइनों के करीब लोग घर आदि बनाने के लिए जगह-जगह खुदाई करते हैं, और यह काम पूरे देश की रेल लाइनों के इर्द-गिर्द हो रहा है। बरसात के दिनों में वहां पानी जमा हो जाता है। और उसका रिसाव रेलवे ट्रैक के नीचे भी होता है। ऐसे में, ट्रैक के कमजोर होने की पूरी-पूरी आशंका रहती है। इसलिए मानसून के दिनों में ऐसी जगहों को लेकर विशेष सावधानी बरतनी चाहिए और वहां पर ट्रैक की मरम्मती को लेकर भी खास एहतियात बरतने की जरूरत है।

यात्रियों की सुरक्षा और संचालन वगैरह के मामले में रेलवे को पेशेवराना अंदाज भी अपनाना होगा। किसी भी बड़े तंत्र के संचालन का यह बहुत जरूरी पक्ष है। पहले डीआरएम की नियुक्तियों में दक्षता और अनुभव को बराबर महत्व दिया जाता था, आजकल वरीयता के आधार पर नियुक्तियां होती हैं। ऐसे में, कई बार नियुक्तियों में चूक हो जाती है, और यही चूक हरदा हादसा होती है |

श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com

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