भोपाल। प्रदेश कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता केके मिश्रा ने मप्र लोक सेवा आयोग (एमपी पीएससी) द्वारा आयोजित ‘‘होम्योपैथिक चिकित्सा अधिकारी परीक्षा-2013’’ में भी एक बड़े घोटाले और गंभीर भ्रष्टाचार का प्रामाणिक आरोप लगाते हुए कहा है कि मप्र सरकार की एक और संस्था एमपी पीएससी द्वारा आयोजित ‘‘आयुर्वेदिक चिकित्सा अधिकारी परीक्षा-2013’’ के प्रश्न पत्र लीक होने की घटना सामने आने के बाद राज्य सरकार द्वारा यह परीक्षा न केवल निरस्त कर दी गई थी, बल्कि इस परीक्षा में पर्चा आउट करने वाले जिस प्रमुख सरगने के रूप में एसटीएफ ने डाॅ. अखिलेश राठौर सहित अन्य 16 लोगों को गिरफ्तार भी किया था। राठौर को कई माह तक जेल में भी रहना पड़ा, उसी प्रमुख सरगने को एमपी पीएससी में ‘होम्योपैथिक चिकित्सा अधिकारी परीक्षा-2013’ की परीक्षा में सलाखों में रहते हुए साक्षात्कार के लिए बुलाया और अखिल भारतीय स्तर पर आयोजित इस परीक्षा के परिणामों की 14 फरवरी, 2015 को जारी चयन सूची में उसका चयन 42वें नंबर पर तथा उनकी पत्नी कीर्ति राठौर का चयन 08 वें नंबर पर आश्चर्यजनक तरीके से कर दिया गया।
यही नहीं मप्र उच्च न्यायालय में लंबित याचिका का फैसला आने के पूर्व ही एमपी पीएससी द्वारा न केवल परीक्षा परिणाम घोषित कर दिये गये, चयन सूची भी विभिन्न संशोधनों के साथ जारी की और यही नहीं मामला प्रकाश में आने के बाद हाल ही में 6 अगस्त, 2015 को जारी नियुक्ति आदेश में वेबसाइट से अखिलेश राठौर का नाम हटा दिया गया है, जबकि चयन सूची में उसका नाम वेबसाइट में शामिल था। यानि घोटाले और भ्रष्टाचार के आरोपों की पुष्टि स्वतः एमपी पीएससी द्वारा कर दी गई है। लिहाजा, राज्य सरकार पीएससी द्वारा आयोजित विभिन्न परीक्षाओं की जांच भी सीबीआई को सौंपे?
आज यहां जारी अपने बयान में मिश्रा ने अपने आरोपों को स्पष्ट करते हुए कहा कि 09 मार्च, 2014 को एमपी पीएससी द्वारा होम्योपैथिक चिकित्सा अधिकारी के पदों पर नियुक्ति के लिये लिखित परीक्षा आयोजित की गई थी, जिसके प्रश्न पत्र विधिवत सील नहीं होने से उनकी गोपनीयता भंग होने की आशंका पर परीक्षार्थियों ने सवाल उठाये थे, किंतु परीक्षकों व अधिकारियों द्वारा इन आपत्तियों को नजरअंदाज कर दिया गया।
यही नहीं परीक्षा उपरांत आयोग द्वारा 24 मार्च, 2014 को उत्तर पुस्तिका प्रकाशित की गई, जिसमें एक प्रश्न के लिए सभी परीक्षार्थियों को 02 बोनस अंक दिये गये। 25 मई, 2014 को संशोधित दूसरी उत्तर पुस्तिका में, जिसमें 18 प्रश्नों के लिए 36 अंक बोनस के रूप में दिये गये। हास्यास्पद तरीके से पुनः आयोग द्वारा 8 अगस्त, 2014 को एक बार फिर अपने संशोधन में आयोग ने 17 प्रश्नों के एवज में 34 अंक बोनस के रूप में दे दिये, यानि जिन परीक्षार्थियों ने प्रश्नों के सही उत्तर दिये और जिन्होंने गलत उत्तर दिये सभी को समान रूप से 34 बोनस अंक दे दिये गये। स्पष्ट है कि कुछ विशिष्ट परीक्षार्थियों के समूह को लाभ पहुंचाने के लिए उत्तर पुस्तिका को बार-बार संशोधित किया।
मिश्रा ने कहा कि आयोग ने 12 नवम्बर, 2014 को उक्त परीक्षा का परिणाम घोषित करते हुए 1114 पदों के विरूद्ध 380 उत्तीर्ण उम्मीदवारों की सूची जारी की और 9 दिसम्बर, 2014 को इस सूची को त्रुटिपूर्ण बताते हुए पुनः 374 उत्तीर्ण परीक्षार्थियों की संशोधित सूची जारी की। इससे परीक्षा और परिणाम दोनों में गड़बड़ी की आशंकाऐं स्पष्ट सामने आ रही हैं? आयोग द्वारा लिखित परीक्षा में सफल परीक्षार्थियों की कोई कट आॅफ सूची जारी नहीं की गई। फिर लिखित परीक्षा में उसकी संशोधित सूची के अनुसार परीक्षार्थियों में से अंतिम चयन के लिए साक्षात्कार जनवरी, 2015 में संपन्न हो गये, जिन्होंने लिखित परीक्षा उत्तीर्ण नहीं की थी, उन्हें भी साक्षात्कार के लिए आमंत्रित किया गया।
उदाहरणार्थ डाॅ. कैलाश पंचेश्वर सहित ऐसे करीब 12 नामों को साक्षात्कार हेतु आमंत्रित किया गया था। यही नहीं, साक्षात्कार के लिए एमपी पीएससी की पैनल सूची में उत्तरप्रदेश के निवासी जिन प्राचार्य डाॅ. अरविंद वर्मा को बुलाया गया था, वे 17 नवम्बर 2014 से निलंबित थे और डाॅ. वर्मा के साक्षात्कार हेतु आने की परीक्षार्थियों को पहले से ही जानकारी थी।
मिश्रा ने कहा कि हालाकि इस घोटाले/भ्रष्टाचार के विरूद्ध म.प्र. उच्च न्यायालय, जबलपुर में एक याचिका क्र. 19976/2014 लंबित है, उसका निर्णय आने के पहले ही आयोग ने न केवल चयन सूची जारी कर दी है, बल्कि नियमानुसार द्वितीय श्रेणी राजपत्रित अधिकारी की प्रथम नियुक्ति गृह जिलों में नहीं दिये जाने का प्रावधान है, उसके बावजूद भी आयोग ने चयनित उम्मीदवारों को मनचाही जगह, जिसमें गृह जिला भी शामिल है, के पदस्थी आदेश 06 अगस्त, 2015 से जारी करना प्रारंभ कर दिये हैं और आश्चर्यजनक ढंग से इन पदस्थी आदेशों में चयनित डाॅ. अखिलेश राठौर का नाम वेबसाईट से हटा लिया गया है, जबकि चयन सूची में उसका नाम वेबसाईट पर उपलब्ध था, यह किस पारदर्शी परीक्षा प्रणाली का प्रतीक है?