मप्र में अध्यापकों के लिए नैतिक शिक्षा का एक पाठ: एक था नंदू

Bhopal Samachar
मप्र के एक अध्यापक ने अपना नाम गोपनीय रखने का आग्रह करते हुए एक कहानी भेजी है। इसके साथ सभी अध्यापकों से ​अपील की गई है कि वो इस कहानी को अपने स्कूल में 'नैतिक शिक्षा' के तहत सुनाएं। ताकि प्रदेश में दूसरा नंदू पैदा ना हो पाए। अपील में यह भी लिखा है कि इस कहानी को शनिवार के दिन बालसभा में भी सुनाया जा सकता है और इसके बाद इस विशेष आयोजन का प्रेसनोट भी जारी करें। पढ़िए क्या लिखा है इस कहानी में:

एक था नंदू

निमाड के एक गांव में एक लड़का रहता था। नाम था नंदू। वो अपने माता पिता का बड़ा ही लाड़ला था लेकिन बचपन से ही बड़ा शैतान। कभी किसी बुजुर्ग की लाठी छीनकर भाग जाता तो कभी कुएं पर रखे मटके फोड़ देता। सारा गांव उससे परेशान था। लोग नंदू के माता पिता से उसकी शिकायत करते, लेकिन माता पिता ध्यान नहीं देते।

नंदू थोड़ा बड़ा हुआ तो उसे स्कूल में भर्ती करा दिया गया। स्कूल में भी नंदू की हरकतें कम नहीं हुईं। वो साथी छात्रों को परेशान करता। कभी उनका बस्ता छिपा देता तो कभी टिफिन खा जाता। छात्रों की यूनिफार्म भी खराब कर दिया करता था। परेशान साथी छात्र अध्यापक से शिकायत करते। अध्यापक नंदू को समझाते परंतु नंदू सबकुछ सुनकर अनसुना कर दिया करता।

एक दिन नंदू ने अपने साथी छात्रों के बस्ते में बिच्छू डाल दिए। जब यह बात उसके शिक्षक को पता चली तो उन्होंने नंदू को चांटा मार दिया। बस फिर क्या था। नंदू रोते रोते अपने घर चला गया और स्कूल में उसके पिताजी ने हंगामा खड़ा कर दिया।

समय गुजरता गया और नंदू बड़ा गया हो। एक दिन किस्मत से नंदू का दोस्त राजा बन गया। नंदू लगातार अपने राजा दोस्त से कहता कि उसे मंत्री बना ले, लेकिन राजा को मालूम था कि नंदू को मंत्री नहीं बनाया जा सकता, फिर भी दोस्ती के नाम पर राजा ने नंदू को अपना दरबारी बना लिया।

दरबारी बनने के बाद तो नंदू और ज्यादा इतराने लगा। उसकी हरकतें और ज्यादा बढ़ गईं। वो दरबार में आने वाले हर खासोआम को जलील किया करता था। लोगोंं का मजाक उड़ाने में नंदू को बड़ा मजा आता है। वो अक्सर कुछ ऐसे कड़वे शब्द बोलता कि लोग गुस्सा हो जाते। धीरे धीरे यह गुस्सा बढ़ता गया। अब लोग राजा के प्रति नाराज होने लगे। लोग सोचते थे कि जब नंदू इतना बदतमीज है ता राजा ने उसे अपना दरबारी क्यों बनाया। लोग राजा को दोष देने लगे। नंदू को कारण लोकप्रिय राजा भी बदनाम हो गया और एक दिन राजा को नंदू की हरकतों के कारण सिंहासन छोड़कर वनवास जाना पड़ा।

इस कहानी से क्या सबक मिलता है
नंबर 1: जैसे अमर बेल कितनी भी खूबसूरत क्यों ना हो, उसे आंगन में नहीं लगाना चाहिए। नहीं तो पूरा बगीचा ही नष्ट हो जाता है। ठीक वैसे ही असंवेदनशील और बदतमीज दोस्तों से हमेशा दूर रहना चाहिए, नहीं तो वो आपका बना बनाया राजपाट चौपट कर डालते हैं।

नंबर 2: अध्यापक यदि दण्ड दें, तो उसे अपने हित में मानकर स्वीकार करना चाहिए। यदि नंदू के पिताजी उसे दण्ड से नहीं बचाते तो बड़ा होकर इतना उदण्ड ना होता और राजा का राजपाट बर्बाद ना होता। 

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