भोपाल। झाबुआ के पेटलावद ब्लास्ट मामले में कलेक्टर एसपी से लेकर तहसीलदार एवं थानेदार तक सभी जिम्मेदार अधिकारियों को बर्खास्त तक किया जा सकता है। इस मामले में किसी न्यायिक या मजिस्ट्रियल जांच की जरूरत नहीं है। इस मामले में कार्रवाई ठीक वैसे ही हो सकती है जैसे अरविंद टीनू जोशी मामले में की गई थी। यह किसी नेता की मांग नहीं बल्कि विशेषज्ञों की राय है।
भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारियों का मानना है कि सिविल सर्विसेज कंडक्ट रूल्स के तहत कलेक्टर से लेकर एसपी, एसडीएम, तहसीलदार तक इस हादसे के लिए जिम्मेदार हैं। सरकार भले ही मामले की मजिस्ट्रियल और न्यायिक जांच करवा रही हो, लेकिन इतने बड़े हादसे पर स्वयं भी कलेक्टर और जिम्मेदार अधिकारियों को नोटिस जारी कर कार्रवाई कर सकती है।
अफसरों की लापरवाही प्रमाणित है
एक्सप्लोसिव विभाग लाइसेंस देता है, लेकिन जांच की जिम्मेदारी लोकल प्रशासन की होती है। ऐसा कोई आदेश सामने नहीं आया जिससे साबित हो कि कलेक्टर ने अपने मातहत अधिकारियों एसडीएम, तहसीलदार और एसपी ने निचले पुलिस अधिकारियों से कभी एक्सप्लोसिव गोदामों और दुकानों की जांच कराई हो।
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- नियम के तहत ये सजा
- सिविल सर्विसेज कंडक्ट रूल्स के तहत बड़ी गलती पर अधिकारी को नौकरी से बर्खास्त किया जा सकता है। जैसा कि आईएएस अरविंद जोशी और टीनू जोशी के मामले में सरकार ने किया।
- अधिकारी का डिमोशन हो सकता है। जैसे यदि किसी कमिश्नर ने बड़ी गलती की हो तो उसे कलेक्टर बना दिया जाए।
- छोटी गलतियों पर अधिकारी की निंदा की जा सकती है कि आपने ये काम अच्छा नहीं किया है। इसे सर्विस रिकॉर्ड में भी रखा जाता है।
- अधिकारी का सालाना इंक्रीमेंट रोका जा सकता है। गलती कितनी बड़ी है इसे देखते हुए यह इंक्रीमेंट एक साल के लिए भी रोका जा सकता है और साल-दर-साल भी।
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निलंबन से कुछ नहीं होता
किसी बड़ी गलती पर निलंबन की कार्रवाई बेमानी है। निलंबन सजा नहीं है। यह केवल जांच की एक प्रक्रिया भर है। पन्ना बस हादसे में भी कुछ अधिकारी निलंबित हुए, लेकिन तीन माह बाद ही बहाल हो गए। ऐसी कार्रवाई का कोई मतलब नहीं है।
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ज्यूडीशियल इंक्वारी किसी काम की नहीं
आश्चर्य है कि पेटलावद हादसे पर सरकार कह रही है कि आगे से ऐसा हुआ तो कलेक्टर और एसपी जिम्मेदार होंगे, तो क्या इस हादसे के लिए वे जिम्मेदार नहीं हैं? केवल यह कह देने से काम नहीं चलेगा कि कलेक्टर और एसपी जिम्मेदार होंगे, कार्रवाई भी होनी चाहिए। ऑल इंडिया सिविल सर्विसेज कंडक्ट रूल्स के प्रावधानों के तहत सरकार को कार्रवाई करनी चाहिए ताकि इतनी मौतों के बाद जनता के बीच संदेश जाए। ये हादसा प्रशासन की बड़ी विफलता है, जो क्षम्य नहीं है। इस हादसे में कलेक्टर और एसपी ने बड़ी चूक की है। उनकी सीधे जिम्मेदारी बनती है, केवल छोटे अधिकारियों पर कार्रवाई करके आप रुक नहीं सकते। ऐसे मामलों में ज्यूडीशियल इंक्वायरी होती है, लेकिन इसमें सालों लग जाते हैं। बाद में ठंडे बस्ते में चली जाती है। रिपोर्ट आती भी है तो इसे एक तरफ पटक दिया जाता है।
केएस शर्मा,
मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव
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कलेक्टर को डिसमिस करना चाहिए
एक्सप्लोसिव का लाइसेंस नागपुर से मिलता है, लेकिन यह कहां और कैसे रखा जा रहा है, यह देखना तो लोकल एडमिनिस्ट्रेशन की ही जिम्मेदारी है। पुलिस और राजस्व वाले चेकिंग ही नहीं करेंगे तो कैसे पता चलेगा कि बारूद कहां और कैसे रखा है? पेटलावद तो इतनी बड़ी जगह भी नहीं कि कुछ पता ही न चल पाए। हादसे के बाद अब कैसे इतना एक्सप्लोसिव निकल रहा है। इस मामले में तो कलेक्टर को डिसमिस करना चाहिए। न्यायिक जांच में तो छह साल निकल जाएंगे। बाद में किसको मालूम कि क्या हुआ। सारी पुलिस गणेशोत्सव, रैली और सभाओं को तो देखती है, लेकिन जनता को कौन देखेगा। कुछ तो अनुशासन होना चाहिए।
निर्मला बुच
मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्य सचिव
हाईकोर्ट कर सकता है जांच की मॉनीटरिंग
व्यापमं घोटाले की तरह ही पेटलावद ब्लास्ट की जांच की मॉनीटरिंग रिटायर्ड जज के बजाय हाई कोर्ट के कार्यरत जज को सौंपी जानी चाहिए। न्यायिक जांच भी समय-सीमा तय करनी होगी। पेटलावद हादसे में जिम्मेदार अधिकारियों की लापरवाही ही नहीं, मिलीभगत भी नजर आ रही है। वरना क्या कारण है कि आबादी के बीच बिना लाइसेंस विस्फोटक का कारोबार चलता रहा और अधिकारियों को पता ही नहीं चला। उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता के तहत कार्रवाई होनी चाहिए।
एलएन सोनी
पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता और वरिष्ठ अधिवक्ता