नेताजी की फाइलें, अब केंद्र की बारी है !

राकेश दुबे@प्रतिदिन। पश्चिम बंगाल सरकार ने जो फाइलें सार्वजनिक की हैं, उनसे यह लगता है कि अंग्रेज और अमेरिकी गुप्तचर विभागों को भी यह शक था कि नेताजी की मौत हवाई दुर्घटना में नहीं हुई है, हालांकि इस प्रसंग से पूरा परदा शायद तभी उठे, जब केंद्र सरकार के पास जो फाइलें हैं, वे सार्वजनिक हों। पश्चिम बंगाल सरकार के पास जो फाइलें हैं, वे सन १९३७ से १९४७  के बीच की हैं, यानी आजादी के बाद नेताजी से संबंधित दस्तावेज केंद्र सरकार के पास हैं। उनमें ऐसे दस्तावेज भी हो सकते हैं, जो निश्चित रूप से बता सकें कि नेताजी की हवाई दुर्घटना में मौत हुई थी या नहीं।

इस रहस्य को छोड़ भी दिया जाए, तो इतने पुराने दस्तावेजों को सार्वजनिक किया जाना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि इससे इतिहास को समझने में मदद मिलती है। यह स्वाभाविक है कि हम अपने राष्ट्रीय नायकों का सम्मान करें, खासकर आजादी के आंदोलन के नेताओं का, लेकिन यह भी याद रखना और इस बात पर जोर देना जरूरी है कि वे भी इंसान थे, कोई दैवी पुरुष नहीं। उनमें कई महान गुण थे, तो कई मानवोचित कमजोरियां भी। उनकी कमजोरियां या कुछ मौकों पर गलत फैसलों को छिपाने की कोई वजह नहीं है, न ही इससे उनका सम्मान घटता है। 

हमारे यहां एक प्रवृत्ति यह है कि किसी भी असुविधाजनक प्रसंग के बारे में जानकारी को छिपाया जाए। इससे हमें इतिहास को समझने और उससे सीखने में जो मदद मिल सकती है, वह नहीं मिलती। महात्मा गांधी और उनके संघर्ष को समझने में निर्मल कुमार बोस की किताब माई डेज विद गांधी  बहुत महत्वपूर्ण है। बोस नोआखली में गांधीजी की यात्रा के दौरान उनके साथ थे और वह किताब उन्हीं दिनों के बारे में है। बोस ने लिखा है कि उन पर इस बात का बहुत दबाव था कि इस किताब को न छपवाया जाए, क्योंकि गांधीजी के कई सहयोगी सोचते थे कि इससे गांधीजी की छवि खराब होती है। ऐसे ही किन्ही फैसलों से नेताजी के बारे में , अनेक अटकलें लगी है, प्रधानमन्त्री उनके परिजनों से मिलना चाहते हैं | सारा भारत नेताजी के प्रति कृतग्य और नत मस्तक है मोदी जी को इस विषय को प्राथमिकता देना चाहिए |

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