कैलाश विजयवर्गीय को क्यों बचा रही है सरकार: कांग्रेस

Bhopal Samachar
भोपाल। प्रदेश कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता केके मिश्रा ने मंगलवार को संपन्न मंत्रि परिषद की बैठक में भ्रष्टाचार में शामिल कर्मचारियों के विरूद्ध अब अभियोजन की स्वीकृति विभागीय स्तर पर ही देने के पारित निर्णय को राज्य सरकार के दोहरे आचरण का प्रतीक बताते हुए कहा है कि इस पारित निर्णय के बाद यदि भ्रष्टाचार में शामिल छोटी मछलियों के विरूद्ध अभियोजन की स्वीकृति विभागीय स्तर पर प्रदान की जाएगी तो बड़े मगरमच्छों के विरूद्ध राज्य सरकार के समक्ष लंबित अभियोजन की स्वीकृति को लेकर सरकार किसलिए और किसके दबाव में मौन है?

आज यहां जारी अपने बयान में मिश्रा ने कहा कि सरकार भ्रष्टाचार को लेकर एक ओर ‘जीरो टालरेंस’ की बात करती है, विधानसभा में भ्रष्टाचार विरोधी विधेयक-2011 पारित करवाकर झूठी वाहवाही बटोरने की बात करती है, वहीं एक सरकारी अधिसूचना जारी करने में भी कोई गुरेज नहीं करती है कि वरिष्ठ प्रशसनिक अधिकारियों के यहां सीबीआई बिना राज्य सरकार की अनुमति के छापा नहीं डाल सकेगी और भ्रष्टाचार के खिलाफ अध्यादेश के माध्यम से लागू सूचना के अधिकार-2005 जैसे बड़े शस्त्र की धार बोथरी करने के लिए तंग करने वाला अधिनियम-2015 विधानसभा में ताबड़तोड़ पारित करवा लेती है। सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिए कि भ्रष्टाचार के विरूद्ध उसकी वास्तविक मंशा क्या है? भ्रष्टाचार को लेकर पहली सूची में शामिल अब तक अभियोजन की स्वीकृति के लिए लंबित 400 नामों पर सरकार क्यों और किसके दबाव में कितने वर्षों से जारी नहीं कर पाई?

मिश्रा ने भ्रष्टाचार के विरूद्ध सरकार पर लगाये दोहरे आचरण के आरोप को स्पष्ट करते हुए कहा है कि मंत्रीमण्डल के मंगलवार को उक्त विषयक पारित प्रस्ताव में छोटी मछलियों को जकड़ने के लिए निर्णय तो ले लिया गया, किंतु नगरीय प्रशासन मंत्री और अब भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय सहित उनकी संपूर्ण मेयर इन काॅसिंल के विरूद्ध वर्ष 2000-05 में सामाजिक सुरक्षा पेंशन तथा राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना में इंदौर में हुए 33 करोड़ रूपयों के पेंशन घोटाले को लेकर मेेरे द्वारा माननीय उच्च न्यायालय इंदौर में दायर याचिका में राज्य सरकार ने स्वयं हलफनामा दायर किया है कि इस विषयक अभियोजन की स्वीकृति राज्य सरकार के समक्ष वर्ष 2006 से लंबित है, इसे उच्च न्यायालय में हलफनामा दे दिये जाने के बाद भी राज्य सरकार आज तक जारी क्यों नहीं कर रही है? और अब तो श्री विजयवर्गीय मंत्री परिषद के सदस्य भी नहीं हैं? सरकार को स्पष्ट करना चाहिए कि भ्रष्टाचार को लेकर छोटी मछलियों और बड़े मगरमच्छों के बीच कार्यवाही हेतु दोहरापन क्यों हैं?

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