राकेश दुबे @प्रतिदिन। और उस सवाल का जवाब मिल गया कि महा गठबंधन का भविष्य क्या है ? समाजवादी पार्टी की और से उसने बिहार में महागठबंधन का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया है। सपा को सीटों के बंटवारे में पांच सीटें दी गई थीं, सपा नेतृत्व ने इसे नाइंसाफी कहते हुए कहा है, पार्टी 50 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। वैसे बिहार में सपा के अलग चुनाव लड़ने से राजनीति पर कोई खास असर नहीं होगा। इसका मुख्य असर राष्ट्रीय राजनीति में दिखाई देगा, खासकर संसद में विपक्षी पार्टियों का जो तालमेल है, वह इससे प्रभावित होगा। सपा की इस चाल के निशाने पर जद (यू) या राजद हैं, क्योंकि इन दोनों पार्टियों की राजनीति बिहार केंद्रित है। मुलायम सिंह यादव को सबसे बड़ी दिक्कत कांग्रेस से है और वह संसद में ऐसी किसी भी रणनीति का हिस्सा बनने से अब पूरी तरह मुक्त हो गए हैं, जिसका नेतृत्व कांग्रेस के हाथ में हो। इसका असर संसद के अगले सत्र में दिखाई देगा।
भारतीय जनता पार्टी को लोकसभा में पूर्ण बहुमत प्राप्त है, लेकिन अपने सहयोगियों के साथ भी राज्यसभा में उसके पास बहुमत नहीं है। कांग्रेस ने सत्तारूढ़ पार्टी की इस कमजोरी का फायदा उठाकर संसद के पिछले सत्र में कोई कामकाज नहीं होने दिया था।
भाजपा के पास अब यही विकल्प है कि वह गैर-राजग पार्टियों में साथी तलाशे। अन्नाद्रमुक, बीजू जनता दल और राकांपा जैसी पार्टियां भाजपा के खिलाफ बहुत आक्रामक नहीं हैं और वे मुद्दों पर सरकार से सहयोग कर सकती हैं। मुलायम सिंह यादव भी कांग्रेस की रणनीति से सहमत नहीं हैं। इस हद तक किसी का विरोध करना उनके मिजाज में नहीं है।
सुषमा स्वराज को निशाना बनाकर आक्रामक होने के वह खिलाफ रहे हैं। शिवराज सिंह चौहान और वसुंधरा राजे सिंधिया पर संसद में हमला करने से सपा और अन्य क्षेत्रीय पार्टियां इसलिए परहेज करना चाहती हैं, क्योंकि इससे उनकी राज्य सरकारों पर संसद में हमले के लिए रास्ता खुल जाएगा।
उत्तर प्रदेश की दोनों ही मुख्य पार्टियों का केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी या गठबंधन से आक्रामक लड़ाई लड़ने का कोई इतिहास नहीं है, क्योंकि उत्तर प्रदेश की राजनीति में इससे कोई फायदा नहीं होता और केंद्र से अच्छेे संबंधों के अपने फायदे हैं। इसके अलावा केंद्र के पास सीबीआई की ताकत है, जिसका राजनीतिक इस्तेमाल संबंधों को बनाने-बिगाड़ने में होता है। अगले विधानसभा चुनावों में भाजपा और सपा की टक्कर होगी, तब तक तो केंद्र से राज्य के लिए सुविधाएं और पैसा पाने में ही राज्य सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी का फायदा है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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