इस शिवलिंग पर खीचा चढ़ाईए, मनचाही संतान प्राप्त होगी

Bhopal Samachar
प्रमोद कुमार@धरती के रंग। छत्तीसगढ़ के कोंडागांव जिले के आलोर ग्राम स्थित पहाड़ के शीर्ष पर गुफा के भीतर मौजूद प्राकृतिक शिवलिंग के दर्शन साल में केवल एक बार किए जा सकते हैं।

फरसगांव ब्लॉक के बड़े डोंगर क्षेत्र की गुफा में मौजूद लिंगेश्वरी माता को शिव और शक्ति का समन्वित रूप माना जाता है। साल भर इस गुफा का प्रवेश द्वार बंद रहता है और हर साल भाद्र महीने के शुक्ल पक्ष में नवमी तिथी के बाद आने वाले बुधवार को एक दिन के लिए क्षेत्रीय बैगा दैविक विधी-विधान के साथ इस गुफा का द्वार खोलते हैं।

गुफा के भीतर हु-ब-हू शिवलिंग की तरह दिखने वाला एक पत्थर उभरा हुआ है, क्षेत्रवासियों के मुताबिक ये पत्थर शिव-पार्वती के अर्धनारिश्वर स्वरूप का परिचायक है। इसीलिए इसे केवल शिवलिंग नहीं, बल्कि लिंगेश्वरी माई के नाम से भी पूजा जाता है। एक ग्रामीण के मुताबिक निसंतान दंपत्ति यहां पहुंचकर संतान की कामना करते हैं और माता उनकी इच्छा पूरी करती है।

यहां मन्नत मांगने का तरीका भी अनोखा है, प्रचलन के मुताबिक संतान इच्छुक दंपत्ति यहां माता के चरणों मे खीरा यानि ककड़ी चढ़ाते हैं और चढ़े हुए खीरे को पुजारियों के द्वारा वापस लौटाने के बाद पति-पत्नी खीरे को अपने नाखून से फाड़कर देव स्थल के समीप ही खाते हैं।  जिससे जल्द उन्हें संतान का सुख नसीब हो जाता है।

साल दर साल इस दैवीय शक्ति से युक्त शिवलिंग की उंचाई खुद-ब-खुद बढ़ती जा रही है। यही नहीं एक अनोखी बात ये भी है कि जब इस गुफा का पट खोला जाता है तो हर साल शिवलिंग के सामने रखे रेत में किसी न किसी जीव जंतु का पद चिन्ह रेत में बना मिलता है और ये पद चिन्ह क्षेत्र के आगामी हालात का पुर्वानुमान कराते हैं।

अगर रेत में बिल्ली के पांव के निसान मिले तो क्षेत्र में भय का महौल रहेगा, इसी तरह बाघ के पैरों के निशान मिले तो क्षेत्र में जंगली जानवरों का आतंक का पूर्वानुमान लागाया जाता है। मुर्गी के के पैरों के निशान अकाल के सूचक हैं तो घोड़े के पैरों के निशान युद्द और कलह का प्रतीक हैं।

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