इंदौर। इंदौर प्रीमियर को-ऑपरेटिव (आईपीसी) बैंक ने 15 साल पहले आरक्षण का आधार लेकर गलत तरीके से अपने कुछ कर्मचारियों का प्रमोशन कर दिया था, लेकिन सहकारिता न्यायालय ने अब उस आदेश को निरस्त कर दिया है। संयुक्त पंजीयक सहकारिता ने आरक्षण अधिनियम का हवाला देते हुए इन पदोन्नातियों को नियम विरुद्ध माना है।
जेआर कोर्ट ने 18 नवंबर 2000 के बैंक के उस आदेश को निरस्त कर दिया है, जिसके आधार पर बैंक के सात कर्मचारी पदोन्नाति के बाद शाखा प्रबंधक, कैशियर और समिति प्रबंधक बन गए थे। संयुक्त पंजीयक अनिलकुमार वर्मा ने यह फैसला इंदौर प्रीमियर को-ऑपरेटिव बैंक कर्मचारी एवं अधिकारी एसोसिएशन द्वारा दायर वाद पर दिया है। यदि जेआर कोर्ट के फैसले का पालन हुआ तो पदोन्नात किए गए कर्मचारियों को वापस उसी पद पर किया जा सकता है। साथ ही पदोन्नात कर्मचारियों ने 15 साल में जितना अतिरिक्त वेतन लिया उसकी वसूली भी की जा सकती है।
नियमों के विपरीत दिया आरक्षण का लाभ
मप्र लोक सेवा अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग आरक्षण अधिनियम-1994 की धारा-2 के अनुसार आरक्षण अधिनियम के प्रावधान केवल उन्हीं संस्थाओं में लागू होंगे जिनमें राज्य शासन की 51 फीसदी या उससे अधिक की भागीदारी हो।
आईपीसी बैंक में राज्य शासन की भागीदारी 10 फीसदी से भी कम है। इसके बावजूद बैंक ने अपने सात कर्मचारियों को आरक्षण का लाभ देकर पदोन्नात कर दिया। बैंक ने आयुक्त सहकारिता से मार्गदर्शन मांगा था, लेकिन मार्गदर्शन नहीं मिलने के बावजूद प्रमोशन कर दिए।
नवंबर 2000 में किए गए पदोन्नाति आदेश के आधार पर दीपक पोरपंथ को लेखापाल से शाखा प्रबंधक, शोभाराम डाबर को कैशियर कम क्लर्क से शाखा लेखापाल बना दिया गया। इसके अलावा जमनालाल मरमट, कलसिंह चौहान और इसीदौर चंपावत को समिति प्रबंधक से सुपरवाइजर बना दिया गया। रमेशचंद्र चौहान को निम्न श्रेणी लिपिक से कैशियर कम क्लर्क और देवीसिंह राठौर को सुपरवाइजर बना दिया गया।
कर्मचारी एसोसिएशन ने इस पदोन्नाति आदेश को बैंक सेवा नियम और आरक्षण अधिनियम 1994 के प्रावधानों के विपरीत बताकर संयुक्त पंजीयक सहकारिता की कोर्ट में केस दायर किया। जेआर कोर्ट का फैसला 15 साल बाद आया। इस बीच कलसिंह चौहान और रमेशचंद्र चौहान का निधन हो चुका है, जबकि पोरपंथ रिटायर हो गए।