भोपाल। वनविभाग यूं तो मप्र शासन का ही एक संगठन हैं परंतु यहां कार्यरत कम्प्यूटर आॅपरेटरों का वेतन देखा जाए तो लगता है यह कोई सरकारी संस्थान नहीं बल्कि पंसारी की दुकान है। हर दुकान का नियम अलग, हर दुकान का वेतन भी अलग। एक पद, एक जैसा कार्य होने के बावजूद अलग अलग जिलों में अलग अलग वेतन दिया जा रहा है। आवाज उठाओ तो नौकरी से ही निकाल देते हैं। अजीब दादागिरी है इस विभाग में अधिकारियों की।
पढ़िए एक पीड़ित का यह खुलाखत:
मध्य प्रदेश के वन विभागो में कार्यरत कम्प्यूटर आपरेटरो के लिये वेतन र्निधारण सरकील से मुख्य वन संरक्षक के द्वारा किया जाता है जो की नियम के विरूध्द है गलत है, क्योंकि वेतन का र्निधारण तो प्रधान मुख्य वन संरक्षक भोपाल से किया जाना चाहिये क्योंकि सभी जगह वन विभाग के कार्यालय में एक सा ही कार्या किया जाता है, तो फिर भी सभी सर्कीलो में कम्प्यूटर आपरेटरो के वेतन अलग अलग क्यों है। इस संबंध में वन विभाग में कार्यरत कम्प्यूटर आपरेट संघ के पद अधिकारीयों द्वारा वरिष्ठ अधिकारीयों से लेकर हमारे देश के मुख्य मंत्री, वन मंत्री तक कई बार गुहार लगाई गई, गई बार निवेदन किया गया परन्तु आज दिनांक तक इस संबंध में कोई भी कार्यवाही नहीं की गई है।
जैसा की मुख्य वन संरक्षक छिदंवाडा में वर्तमान में 175 एवं 200 घंण्टे के हिसाब से माह में 14000 हजार से लेकर 16000 हजार तक का मासिक वेतन दिया जाता है।
वहीं मुख्य वन संरक्षक सिवनी वृत सिवनी में 175 घण्टे के हिसाब से माह में 7000 रूपये से लेकर 11725 रूपये का भुगतान किया जा रहा है।
वही पर सिवनी में मुख्य वन संरक्षक सिवनी के द्वारा दिये गये आदेशा अनुसार भी 11725 रूपये का भुगतान सिर्फ वनमण्डल के एक आपरेटर को दिया जाता है, जबकी परिक्षेत्र एवं अन्य स्थान पर कार्यरत कम्प्यूटर आपरेटर भी उस योग्यता में आने पर भी उन्हे वर्तमान में 7000 हजार रूपये का भुगतान दिया जाता है।
वन विभाग में अन्य व़ृत्तो में वित्तीय वर्ष में वेतन र्निधारण के नयी दरे लगू हो जाती है परन्तु सिवनी वृत में दो दो साल तक नई वेतन का र्निधारण नहीं किया जाता। ऐसा क्यों ?
हमारे देश में वन विभाग में क्या अलग अलग कार्य किये जाते है जिसके हिसाब से वन विभाग में कार्यरत कम्प्यूटर आपरेटरों का वेतन हर जगह अलग अलग दरो से भुगतान किया जा रहा है जो नियम के विरूद्ध है।
वन विभाग में कार्यरत कम्प्यूटर आपरेट संघ के पद अधिकारीयों के द्वारा घण्टो की प्रथा को बंद करने एवं नियमितिकरण, संविदा के संबंध में हजारों बार वरिष्ठ अधिकारियों, आरे देश के मुख्य मंत्री वन मंत्री से निवेदन किय गया है परन्तु आज तक उक्त संबंध में कोई कार्यवाही नहीं की गई है।
पीड़ित ने अपना नाम गोपनीय रखने का आग्रह किया है।