गरीब और गरीब होगा, अमीरों के लिए यह व्यवस्था लाभदायी

Bhopal Samachar
राकेश दुबे@प्रतिदिन। 25 सालों से देश की हर सरकार ने ट्रिकिल डाउन सिद्धांत पर आंख मूंदकर अमल किया है| कॉरपोरेट और उद्योगों को खरबों रुपए की कर रियायत दी गई और गरीब आदमी पर प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष करों का बोझ बढ़ा दिया गया| इससे पूरा समाज आय विषमता के मकड़जाल में जकड़ता चला गया है| बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप (बीसीजी) की ताजा रिपोर्ट ‘ग्लोबल वेल्थ-2015’ के अनुसार वर्ष २०१४  में भारत के मात्र ९२८ अमीर परिवारों की मुट्ठी में देश की २० प्रतिश्त संपति थी, जो २०१९  तक बढ़कर २४  प्रतिशत हो जाएगी| फिलहाल इन परिवारों की औसत दौलत करीब ६६ अरब रुपए है|  रिपोर्ट के अनुसार जिन परिवारों की औसत दौलत ६.६ करोड़ रुपए है, उनका ३६ प्रतिशत संपत्ति पर कब्जा है|  वर्ष २००९  में इस वर्ग की दौलत३३ प्रतिशत थी, जो २०१९ में बढ़कर ३८  प्रतिशत हो जाने का अनुमान है|  अर्थ यह कि मात्र एक दशक में उनकी संपत्ति में पांच प्रतिशत का उछाला आ जाएगा. यहां बताना जरूरी है कि वि के अरबपति देशों की सूची में भारत का स्थान चौथा है. उससे ऊपर केवल अमेरिका, चीन और ब्रिटेन हैं|

अमीर-गरीब के बीच तेजी से चौड़ी होती खाई सामाजिक टकराव को जन्म दे रही है, जिसका देश के विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है. ऑस्ट्रेलिया के  इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक्स एंड पीस द्वारा तैयार ग्लोबल पीस इंडेक्स२०१५  में दुनिया के १६२  देशों में भारत को १४३ वां स्थान दिया गया है|  इस अध्ययन के अनुसार भारत में अकेले एक साल में हुई हिंसक वारदातों से ३.४१ खरब डॉलर की क्षति हुई| यदि जीडीपी की तराजू में तोले तो यह घाटा ४.७ प्रतिशत होता है |

मैकेंजी ग्लोबल इंस्टीट्यूट की ताजा रिपोर्ट के अनुसार टैक्स काटने के बाद दुनिया की बड़ी कंपनियों का मुनाफा बीस खरब डॉलर से बढ़कर ७२ खरब डॉलर हो गया है|  जब पूरा विश्व मंदी की चपेट में हो, तब भीमकाय कंपनियों का बढ़ता मुनाफा चौंकाता है|  इसका एक ही कारण है और वह है उन्हें मिली भारी कर छूट| दुनिया में खुली अर्थव्यवस्था का सरदार अमेरिका है, जो हमारे नीति निर्धारकों का आदर्श है. सामाजिक असमानता से जन्मे जनाक्रोश के कारण आज अमेरिकी जेलें कैदियों से भरी पड़ी हैं|  यूएनडीपी की रिपोर्ट (नवम्बर 2013) के अनुसार अमेरिका में प्रति एक लाख आबादी पर ७१६   कैदी हैं| भारत में जेल बंदियों की संख्या प्रति लाख पर ३०  है|  ये आंकड़े अर्थवव्यस्था के मौजूदा विकास मॉडल का मखौल उड़ाते हैं| पुष्टि करते हैं कि मुक्त अर्थव्यवस्था से उपजी असमानता की मार सबसे अधिक गरीब और पिछड़े तबके पर पड़ती है|

श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com

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