जबलपुर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने शासकीय स्कूलों की दुर्दशा पर चिंता जाहिर करने वाली जनहित याचिका पर केन्द्र व राज्य शासन, प्रमुख सचिव स्कूल शिक्षा और संचालक लोक शिक्षण को नोटिस जारी कर जवाब-तलब कर लिया है। इसके लिए चार सप्ताह का समय दिया गया है।
सोमवार को प्रशासनिक न्यायाधीश राजेन्द्र मेनन व जस्टिस एसके सेठ की युगलपीठ में मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान जनहित याचिकाकर्ता समाजसेवी प्रवीण सिंह का पक्ष अधिवक्ता निशांत जैन ने रखा। उन्होंने दलील दी कि सर्वशिक्षा अभियान और शिक्षा का अधिकार जैसी बेहतर योजनाओं के बावजूद शासकीय स्कूलों का हाल-बेहाल है। इस वजह से अभिभावक अपने बच्चों को शासकीय स्कूलों में दाखिला देने की हिम्मत नहीं करते।
अतीत सुनहरा, वर्तमान बदरंग
बहस के दौरान दलील दी गई कि एक जमाने में शासकीय स्कूलों से पढ़कर निकले छात्रों ने देश-दुनिया में नाम रोशन किया। इसकी वजह शासकीय स्कूलों का स्तर उच्च होना थी लेकिन कालांतर में शासकीय स्कूलों का स्तर गर्त में समा गया है। इस वजह से यहां पढ़ने वाले छात्र बेहद गरीब तबके के होते हैं, जिनका स्तर बेहतर नहीं बन पाता। सवाल उठता है कि आजादी के इतने साल गुजरने के बावजूद देश-प्रदेश में शिक्षा की इतनी दयनीय स्थिति क्यों है? आरटीई का झुनझुना तो थमा दिया गया लेकिन इसका पालन महज कागजी बनकर रह गया है।
क्या शासकीय अधिकारी पालन करेंगे
जनहित याचिकाकर्ता का कहना है कि शासकीय अधिकारियों को अपने बच्चों को शासकीय स्कूलों में दाखिला दिलाने का हल्ला तो मच गया लेकिन क्या वाकई शासकीय अधिकारी ऐसा करेंगे?