राकेश दुबे@प्रतिदिन। वैसे तो नैसर्गिक न्याय का सिद्धन्त है जो आप दे नहीं सकते उसे आप ले नहीं सकते | कोई भी न्यायिक प्रक्रिया जीवन दे नहीं सकती पर अपराध की गंभीरता को देखते हुए फांसी की सज़ा दे सकती है | भारत में मृत्यु दंड का कोई और तरीका भी विधि सम्मत नहीं माना गया है |फांसी की सजा को लेकर देशभर में शुरू हुई बहस के बीच विधि आयोग ने आतंकवाद और देशद्रोह को छोड़कर अन्य मामलों में फांसी की सजा को खत्म करने की सिफारिश की है। आयोग का मानना है कि फांसी की सजा होने के बावजूद अपराधों पर रोक नहीं लगी और न ही अपराधियों में इसका खौफ है। इससे ज्यादा असर तो उम्रकैद की सजा का पड़ा है।
नौ सदस्यीय आयोग के सभी सदस्य इस सिफारिश से सहमत नहीं हैं। तीन सदस्य फांसी की सजा के पक्ष में हैं। इनमें से एक फुलटाइम सदस्य जबकि दो सरकारी सदस्य हैं। 20वें विधि आयोग ने 272 अपनी पेज की रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि फांसी की सजा को खत्म करने को लेकर बहस की जरूरत आ पड़ी है। आयोग ने कहा कि मृत्युदंड को खत्म करने के कई विकल्प हैं। इस पर या तो बिना किसी विलंब के रोक लगाई जा सकती है या इसे खत्म करने के लिए अलग से बिल लाया जा सकता है।
आयोग ने कहा कि फांसी को खत्म करने के लिए किसी खास तरीके को अमल में लाने की सिफारिश करने का उसका कोई इरादा नहीं हैं। आयोग ने आतंकवाद और देशद्रोह के मामले में फांसी की सजा का समर्थन किया है। आयोग का मानना है कि आतंकवाद को अन्य अपराधों से अलग मानने का कोई वैध कारण तो नहीं है लेकिन समय-समय पर यह तर्क दिया जाता है कि आतंकवाद और देशद्रोह के मामलों में मृत्युदंड खत्म करने से राष्ट्रीय सुरक्षा प्रभावित हो सकती है
जस्टिस एपी शाह की अध्यक्षता वाले आयोग ने रेयररेस्ट ऑफ रेयर के सिद्धांत पर भी सवाल उठाया है, जिसके आधार पर फांसी की सजा दी जाती है। आयोग का कहना है कि लंबी और विस्तृत चर्चा के बाद उसका मानना है कि रेयररेस्ट ऑफ रेयर के सिद्धांत के तहत फांसी की सजा भी संवैधानिक तौर पर नहीं टिकती। रिपोर्ट में कहा गया है कि फांसी की सजा जारी रखने से कई गंभीर संवैधानिक सवाल उठते हैं। मसलन न्याय का निष्फल होना, आपराधिक न्याय व्यवस्था में गरीबों की दुर्दशा आदि। आयोग की सिफ़ारिशो के साथ सरकार को बिल लाने के पूर्व यह विचार भी करना चाहिए कि देश में आतंकवाद बड़ा है और उसका पहला पायदान देश द्रोह है |
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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