आपकी और दिग्विजय सिंह की कृपा से अध्यापकों के पास खोने को कुछ नहीं बचा

Bhopal Samachar
माननीय मुख्यमंत्री महोदय, 
अत्यन्त पीड़ा के साथ आपसे निवेदन कर रहे हैं कि कृपया आप अपने मूल स्वरूप को पहचानें।  आप मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के अंतःकरण में स्थित अपने शिव को पहचानें। माननीय मुख्यमंत्री महोदय आप पहचानें कि आप किसके प्रतिनिधि हैं. वास्तविक प्रतिनिधि तो आप जनता के हैं न कि प्रशासन के। आप प्रशासन की भाषा क्यों बोल रहे हैं? आप याद कीजिए , आप भी अध्यापकों के धरना स्थल पर तब आए थे जब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी। आपने कहा था- अध्यापकों की सारी मांगें जायज हैं.अध्यापकों ने आप पर, आपकी पार्टी पर भरोसा किया। आपकी पार्टी के 12 साल और खुद आपके कार्यकाल के 10 वर्ष पूरा होने को हैं और आप अपने सफल कार्यकाल का जश्न मनाने वाले हैं। जब आप जश्न मना रहे होंगे तब अध्यापक संवर्ग इस बात के लिए खुद को कोस रहा होगा कि आपको तीन पंचवर्षीय देने के बाद भी अध्यापकों की स्थिति में परिवर्तन नहीं आया है।

माननीय मुख्यमंत्री महोदय आपने और आपकी पार्टी ने समान कार्य समान वेतन देने की घोषणा की थी. तब आपकी पार्टी को यह क्यों याद नहीं रहा कि हमने इस नौकरी की सेवाशर्तों को स्वीकार किया है? आपको तब यह क्यों याद नहीं रहा कि हम करारनामा पर काम करने वाले कर्मचारी हैं? क्या यह शिवराज को शोभा देता है कि वह अपनी कुर्सी के लिए झूठे वादे करे? कल जब कांग्रेस की सरकार थी तब आप हमें समर्थन देने मंच पर आते थे, तो क्या तब आप हमें भड़काने आते थे? यदि हां तो क्या ऐसी राजनीति करना आपको शोभा देता है? और यदि नहीं तो फिर जब कोई आज हमारे मंच पर आकर अपना समर्थन देता है तो आप उसका राजनैतिकरण क्यों कर देते हैं? और तब भी गेंद तो आपके ही पाले में है,आप अध्यापकों का हित करोगे तो अध्यापकों का हीरो तो आप ही होगे न.

माननीय मुख्यमंत्री महोदय, अध्यापक संविदा शिक्षक जिस पद पर काम कर रहा है उसके लिए वह पूरी तरह से योग्य तो है ही, कई उनमें से भी अधिक काबिलियत रखते हैं. इसलिए यदि आपके सलाहकार यह सोचते हैं कि अध्यापकों के मूवमेंट को अध्यापक नेताओं को विधायक की टिकिट आदि देकर आप कुचल दोगे तो यह आपके सलाहकारों की सबसे बड़ी भूल होगी. बल्कि ऐसा करने से अध्यापकों का आक्रोश और बढ़ेगा. आप यह समझ लीजिए कि आपकी दमनकारी नीति और शिक्षा विभाग के क्रूर मजाक ने अध्यापकों में नेताओं की एक बड़ी फौज खड़ी कर दी है. आपसे निवेदन है अध्यापक नेताओं को खरीदने- बेचने की मानसिकता से आपकी योजना श्रेष्ठ हो. किसी की ब्रांडिंग करने के लिए अरबों रुपए खर्च होते हैं, आप एक बार अध्यापकों की समस्याओं को जड़ से खत्म करने के बारे में सोचें. फिर देखें यह अध्यापक किस तरह आपको महानायक बनाए रखता है.

माननीय मुख्यमंत्री महोदय , आपने यह अनुभव किया होगा कि अध्यापक कार्यवाहियों और आपके प्रशासन की धमकियों से डरते नहीं हैं. क्या आपने सोचा है ऐसा क्यों है? माननीय मुख्यमंत्री महोदय डरता तो वह है जिसके पास खोने को कुछ हो. अध्य़ापकों के पास खोने को है क्या? बहुत से अध्यापक हैं जो रिटायर्डमेंट के कगार पर हैं. वे किस कार्यवाही से डरें? नौकरी रहेगी तो एक दो साल और नौकरी कर लेंगे, और गई तो समझ लेंगे कि सरकार ने दो साल पहले रिटायर कर दिया. जिसके पास खोने को कुछ न हो वह कुछ भी कर सकता है, और आपकी और दिग्विजय सिंह की कृपा से अध्यापकों के पास खोने को कुछ नहीं है.

कृपया आप विचार करें, क्या आपने बिना आंदोलन किए अध्यापकों को कुछ दिया है ?
सबसे बड़ी बात यह है कि शिक्षा राज्य की जिम्मेदारी है. अच्छे शिक्षक नियुक्त करना राज्य की जिम्मेदारी है. आप राज्य के मुखिया हैं. यह आपकी ड्यूटी है कि अापके राज्य की शालाओं में बाधारहित अध्यापन हो. लेकिन ऐसा लगता है कि शिक्षा राज्य की जिम्मेदारी नहीं सिर्फ अध्यापकों की जिम्मेदारी है. और ये अध्यापक आपको सिरदर्द महसूस होते हैं. अगर ऐसा  नहीं होता तो आपने अध्यापकों की समस्याओं पर मौन धारण नहीं किया होता.

माननीय मुख्यमंत्री महोदय , इस आंदोलन के इतना उग्र होने का एक कारण आप स्वयं हैं. आप अध्यापकों से संवाद करने से भागते रहे हैं. अध्यापकों ने आपसे जब भी संवाद करने की कोशिश की आपने उन्हें 2017 की याद िदलाई. आपने २०१७ का जो समझौता क़िया उसे आप जबरन मध्यप्रदेश के अध्यापकों से हुआ समझौता बताने की कोशिश कर रहे हैं. जबकि वह समझौता सिर्फ आपके और पाटीदार के बीच एक डीलिंग थी.माननीय मुख्यमंत्री महोदय आंदोलन और उसके बाद हुए समझौते के बाद पाटीदार को टिकिट आफर करते हुए एक बार भी नहीं सोचा कि लोग क्या सवाल करेंगे? आपने पाटीदार को टिकिट देकर अध्यापकों का हमेशा के लिए गिरवी नामा लिखा लिया? प्रदेश के दो लाख से अधिक अध्यापकों की भावनाओं के साथ खेलते हुए आपको जरा सा संकोच नहीं हुआ? आप बार- बार २०१७ की दुहाई देते हैं , यह २०१७ आखिर क्यों? आपने २००३ में चुनाव के पूर्व कहा था समान कार्य समान वेतन देने का. आज १२ साल होने जा रहे हैं , अभी तक नहीं दिया. जो वेतन शिक्षकों को २००६ में दिया वह वेतन आप २०१७ में देंगे. अध्यापक इस बात को क्यों माने? आखिर आपकी ऐसी क्या मजबूरी थी कि आपने अपने विधायक की टिकिट काटकर हमारे अध्यापक नेता को टिकिट दी ? किश्तों का वेतन पाटीदार ने स्वीकार किया था क्योंकि आपने उसकी सीट पक्की कर दी थी , उसे अध्यापक हितों से कुछ लेना- देना नहीं है.

यह आंदोलन क्यों हुआ, उसके मूल प्रश्नों पर विचार करें-
१. आपने अध्यापकों के तत्कालीन नेता को विधायक की टिकिट दी. यह सिद्ध करना जरूरी था कि अाम अध्यापक किसी  नेता के इशारों पर चलने मजबूर नहीं हैं.

२. जो समझौता २०१३ में हुआ, वह अध्यापकों को मंजूर नहीं था . इसी कारण संयुक्त मोर्चा टूट गया था. तब भी अध्यापक एकमुश्त छठावेतन चाहते थे और अब भी एकमुश्त छठावेतन चाहते हैं. वह मांग अधूरी रह गई थी, उसे पूरा कराने के लिए ही प्रदेश के अध्यापकों ने आंदोलन किया.

३. समान कार्य - समान वेतन  और शिक्षा विभाग में संविलियन की आपकी पार्टी की घोषणा थी जिसे आपने अभी तक पूरा नहीं किया है.अध्यापकों की सारी समस्याओं का अंत शिक्षक संवर्ग में संविलियन से ही संभव है. इसलिए एक-एक अध्यापक एक हो गया.

४. प्रदेश में २ लाख से अधिक अध्यापक - संविदा शिक्षक संवर्ग है. आपके अधिकारी आए दिन विसंगतिपूर्ण आदेश जारी करते हैं. जिनसे लाखों अध्यापक एक साथ प्रभावित हो जाते हैं. और जब अध्यापक समस्याओं के निराकरण के लिए आपके अधिकारियों के पास आते हैं तो कुत्ते की तरह दुतकार कर भगा दिए जाते हैं और समस्याओं के निराकरण की तो बात दूर है , ऊपर से कार्यवाही का खौफ दिखाते हैं. ऐसी स्थिति में अध्यापक आपसे बात करना चाहता है, और आप २०१७ का हवाला देकर संवाद करने से मना कर देते हैं. आप स्वयं ही देखें कि पाटीदार के अतिरिक्त आपने किस अध्यापक नेता से पिछले दो सालों में बात की है .

५. आप किश्तों में  दिए जा रहे जिस छठे वेतन की बात कर रहे हैं , उसमें भारी विसंगतियां हैं, एक तो ये कि उसकी अंतिम किश्त और समायोजन १ जनवरी २०१६ के पूर्व पूरा होना चाहिए क्योंकि छठे वेतन की अवधि यहां समाप्त हो जाता है. जब सभी को सातवा वेतन देय होगा तब हमें छठा वेतन दिया जाना समझ से परे है.दूसरी बात , वरिष्ठ अध्यापक और सहायक अध्यापक की अंतरिम राहत की गणना की गलती के कारण प्रत्येक सहायक अध्यापक को अंतरिम राहत में ४००० का नुकसान हो रहा है. जिसमें आज तीसरी किश्त दिए जाने की अवधि तक भी सुधार  नहीं किया गया.क्यों? अंतरिम राहत के आदेश में कम से कम १ दर्जन विसंगतियां हैं , जिसमें सुधार करना आपके अधिकारी उचित नहीं समझते.

७. स्वयं आपके अधिकारियों की जुबान में,
छठे वेतन का
२५ प्रतिशत सितम्बर २०१३ में
२५ प्रतिशत सितम्बर २०१४ में
२५ प्रतिशत सितम्बर  २०१५ में
इस प्रकार  छठे वेतन का ७५ प्रतिशत सितम्बर २०१५ तक आप स्वमेव पूरा कर रहे हैं.
और बचा हुआ
शेष २५ प्रतिशत सितम्बर २०१६ में पूरा करेंगे.

अध्यापक चाहते हैं कि आप समान कार्य समान वेतन की अंतिम किश्त सितम्बर २०१६ के बजाय आप सितम्बर २०१५ में पूरा कर समान कार्य का समान वेतन दें.

आप स्वयं विचार करें , आपने ७५ प्रतिशत राशि अपनी मर्जी से  दे दी है. केवल २५ प्रतिशत राशि देने में आपका बजट कैसे आड़े आ गया?

अधिकारियों के मुताबिक एक किश्त यानी छठे वेतन का २५ प्रतिशत देने में ४५० करोड़ रुपए का भार आता है लेकिन जब हम एक अतिरिक्त किश्त की मांग एक वर्ष पूर्व करते हैं तो वह कभी २२५० करोड़ तो कभी ३००० करोड़ और कभी तो १७ हजार करोड़ रुपए हो जाता है.

इससे यह स्पष्ट है कि या तो वे अभी सही तरीके से छठे वेतन का २५ प्रतिशत नहीं दे रहे हैं, या फिर आंकड़ों को जानबूझकर अधिक बता रहे हैं ताकि माननीय मुख्यमंत्री महोदय एक ही झटके में हमारी मांग को खारिज कर दें.

८. माननीय मुख्यमंत्री महोदय , आपकी उदारता जगजाहिर है. अध्यापकों से बात करने से जो आपको रोक रहा है, वह आपका परम शत्रु है. इस आंदोलन को प्रत्येक अध्यापक अपने अस्तित्व की लड़ाई समझकर चला रहा है. सबसे बड़ी बात हार और जीत दोनों को स्वीकार कर लड़ रहा है. शोषण के चरम पर पहुंच चुका अध्यापक इस बात से दुखी है कि आप उसके स्वयं के आंदोलन को किसी और के द्वारा भड़काया हुआ कहकर राजनैतिकरण कर रहे हैं. आप जिस भी व्यक्ति से अध्यापकों के मैटर पर सलाह ले रहे हैं , वह आपको भ्रमित कर रहा है.कृपया आप अधिकारियों से पूछें सिरफ २५ प्रतिशत अतिरिक्त राशि देने में इतना भारी- भरकम बजट कैसे?

जब समान कार्य समान वेतन दे ही रहे हैं तो संविलियन पर १७ हजार करोड़ रुपए किस बात के लगेंगे?

माननीय मुख्यमंत्री महोदय , अत्यंत आदरपूर्वक निवेदन है कि अध्यापकों की दोनों ही मांगें अत्यधिक संवेदनशील व पूर्णतया न्यायोचित हैं. अध्यापकों को किश्तों में छठा वेतन न तो तब मंजूर था, न अब मंजूर है.आशा है आप अपने मूल स्वभाव अनुसार खुले दिल से निर्णय लेगे.

भवदीय
आंदोलन से जुड़ा हुआ एक आम अध्यापक .

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