राकेश दुबे@प्रतिदिन। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही की विकास दर का आंकड़ा सेंट्रल स्टेटिस्टिक्स आफिस (सीएसओ) ने जारी किया है , जो सात प्रतिशत है। सरकार का अनुमान है कि इस साल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की दर ८.१ प्रतिशत रहेगी, लेकिन शुरुआत खराब हुई है। इससे ठीक पहले की तिमाही (जनवरी-मार्च) में जीडीपी आधा प्रतिशत [७.५] अधिक थी। सीएसओ के अनुसार गत तिमाही में कृषि विकास की दर १.९ प्रतिशत रही, जबकि उद्योग और सेवा क्षेत्र में यह क्रमश: ६.५ और ८.९ प्रतिशत आंकी गई। जिसका स्पष्ट अर्थ है की सेवा क्षेत्र को छोड़ कर, शेष दोनों क्षेत्रों का विकास सुस्त रहा।
इस दौरान सर्वाधिक रोजगार मुहैया कराने वाले मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का आंकड़ा ७.२ प्रतिशत और निर्माण का ६.९ प्रतिशत पर अटक गया। केवल होटल, व्यापार, परिवहन और संचार में थोड़ी रौनक देखने को मिली, जहां विकास दर दो अंक में (12१२.८ प्रतिशत ) दर्ज की गई। अनुमान है कि निर्यात के मोर्चे पर शिथिलता के कारण विकास दर तीन प्रतिशत गोता खा गई। डॉलर के मुकाबले रुपए के उतार-चढ़ाव का भी अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) और एशियाई विकास बैंक (एडीबी) ने चालू वित्त वर्ष में भारत की विकास दर ७.५ से ७.८ प्रतिशत के बीच रहने का अनुमान लगाया है। यह आंकड़ा सरकारी अंदाजे से कम है।
अगर अगले नौ माह में हालात नहीं सुधरे, तो आइएमएफ और एडीबी की भविष्यवाणी भी विफल हो सकती है। जीडीपी की ताजा चाल की तुलना पिछले वर्षों से की जाए, तो स्थिति और स्पष्ट हो जाती है। विश्व बैंक के अनुसार २०१४ में भारत की विकास दर ७.४ प्रतिशत थी और गत पांच सालों में जीडीपी का सबसे ऊंचा आंकड़ा २०१० में देखने को मिला, जो दो अंकों में था। तब केंद्र में मनमोहन सिंह की सरकार थी। उस ऊंचाई तक पहुंचने के लिए मोदी सरकार को काफी परिश्रम करना पड़ेगा।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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