
भागवत ने संघ के मुखपत्र "पांचजन्य" और "आर्गेनाइजर" को दिए इंटरव्यू में भी इस संबंध में अपने विचार रखे।
मोहन भागवत का कहना है कि संविधान में सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण नीति की बात है। इसलिए व्यवहार में भी वैसा ही होना चाहिए, जैसा संविधानकार चाहते थे। अगर इसका उसी आधार पर प्रयोग होता, तो आज समस्या नहीं खड़ी होती। आज आरक्षण राजनीति का हथियार बन गया है।
दबाव की राजनीति से संबंधित सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, प्रजातंत्र की कुछ अपेक्षाएं हैं, लेकिन दबाव बनाकर दूसरों को दुखी कर इन्हें पूरा नहीं किया जा सकता।
सब सुखी हों, ऐसा समग्र भाव होना चाहिए। उन्होंने कहा, देश के हित में हमारा हित है, ये समझकर चलना समझदारी है। शासन को इतना संवेदनशील होना चाहिए कि आंदोलन हुए बिना समस्याओं को ध्यान में लेकर उनके हल निकालने का प्रयास करे।
आपसी सहयोग से मिटेगा संघर्ष
सत्ता और समाज के बीच संघर्ष पर सरसंघचालक ने कहा कि सत्ता और समाज के आपसी सहयोग से देश बना है, इसके संघर्ष से नहीं। एकात्मक मानवदर्शन बिल्कुल व्यावहारिक बात है, इसे धरती पर उतारने के लिए हमको और कुछ करना पड़ेगा। जब तक हम प्रयोग द्वारा वह नहीं दिखा पाते, तब तक इसकी व्यवहारिकता सिद्ध नहीं कर सकते।