नई दिल्ली। आज 25 सितम्बर है। भाजपा सत्ता में हैं और आज पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्मदिवस है। श्रृद्धांजलियों के कार्यक्रम चल रहे हैं। पंडितजी को याद किया जा रहा है परंतु सवाल यह है कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय की रहस्यमयी मौत से परदा क्यों नहीं उठाया जा रहा है। अब तो पंडितजी के अनुयायियों की ही सरकार है, फिर इस सच को छिपाकर क्यों रखा जा रहा है।
दिग्विजय सिंह ने भी इस बारे में जिक्र किया था। उन्होंने कहा था कि क्या मोदी सरकार जनसंघ नेता दीनदयाल उपाध्याय और डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी की संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत की भी जांच कराएगी? उन्होंने कहा कि मोदी सरकार के पास पर्याप्त मौका है, उसे अपने इन दोनों पार्टी के संस्थापक नेताओं की मौत कैसे हुई इसका सच देशवासियों को बताना चाहिए। पंडित दीनदयाल उपाध्याय की मौत के 47 साल बाद उनके परिजनों ने हत्या की आशंका जताते हुए जांच की मांग की थी। पं. उपाध्याय की भतीजी मधु शर्मा, बीना शर्मा और भतीजे विनोद शुक्ला ने कहा कि वे केंद्र सरकार को अब सच्चाई सामने लाना चाहिए। 11 फरवरी 1968 की रात में वे ट्रेन से लखनऊ से पटना जा रहे थे। दूसरे दिन सुबह मुगल सराय स्टेशन पर कपड़े में लिपटा हुआ एक शव देखा गया। पहचानने पर पता चला कि यह पार्थिव शरीर पंडितजी का था।
1952 में बने थे महामंत्री
पंडित दीनदयाल उपाध्याय 1952 में कानपुर जनसंघ के पहले अधिवेशन में जनसंघ के महामंत्री बने थे। डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी दीनदयाल उपाध्याय को पहले से नहीं जानते थे। इस अधिवेशन में उन्होंने उपाध्याय की कार्यक्षमता, संगठन कौशल एवं गहरार्इ से विचार करने के स्वभाव को अनुभव किया। उसी आधार पर उन्होंने यह प्रसिद्ध वाक्य कहा- ”यदि मुझे दो दीनदयाल और मिल जाएं तो मैं भारतीय राजनीति का नक्शा बदल दूं।
जनसंघ एक दल नहीं आंदोलन
पंडित दीनदयाल उपाध्याय का कहना था कि भारतीय जनसंघ एक अलग प्रकार का दल है। किसी भी प्रकार सत्ता में आने की लालसा वाले लोगों का यह झुंड नहीं है। जनसंघ एक दल नही एक आंदोलन है। यह राष्ट्र के लक्ष्य को आग्रहपूर्वक प्राप्त करने की आकांक्षा है। उनका कहना था कि हिन्दू समाज को चाहिए कि दूसरे धर्म को मानने वालों को भी सम्मान दे। इसी से ही साम्प्रदायिकता खत्म हो सकती है। उपाध्याय ने मुसिलम व र्इसाइयों के लिए ‘हिन्दू समाज के ही अपने उन ‘अंगो शब्द का प्रयोग किया तथा उन्हें भारतीय जनजीवन का अंग स्वीकार किया है।