राकेश दुबे@प्रतिदिन। आतंकवाद पर भारत-संयुक्त अरब अमीरात का नया रुख सुर्खियों में है, लेकिन अमीरात के साथ हमारे रिश्ते का महत्वपूर्ण पहलू आर्थिक है। चीन और अमेरिका के बाद अमीरात भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है, जिसके साथ 60 अरब डॉलर का वार्षिक कारोबार होता है। साथ ही यह हमारी वस्तुओं का दूसरा सबसे बड़ा आयातक देश है, जहां हम 33 अरब डॉलर का निर्यात करते हैं। भारत के लिए कच्चे तेल का यह छठा सबसे बड़ा स्रोत है।
इसकी अकूत संपत्ति, तेल एवं गैस संपदा को देखते हुए यह भारत के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का भी एक बड़ा संभावित स्रोत है। अभी संयुक्त अरब अमीरात से भारत में कुल मिलाकर मात्र तीन अरब डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हुआ है। हालांकि अमीरात में कुछ ऐसे संप्रभु सरकारी कोष हैं, जिनकी संपत्ति दस खरब डॉलर से ज्यादा है। मोदी ने इन्फ्रास्ट्रक्चर और कृषि क्षेत्र में अमीरात से दस खरब डॉलर निवेश की इच्छा जताई है। अगर इनमें से एक छोटे से अंश का भी निवेश आना शुरू होता है, तो यह बड़ी उपलब्धि होगी।
संयुक्त अरब अमीरात में भारतीय समुदाय के 26 लाख लोग रहते हैं, जो वहां रहने वाले प्रवासियों का सबसे बड़ा समूह है। उनमें डॉक्टर, इंजीनियर, दुकानदार, एकाउंटेंट आदि भी हैं, जो प्रति वर्ष 15 अरब डॉलर देश (भारत) में भेजते हैं। महात्वाकांक्षी अमीरात, जो पहले से ही तेल से अलग अर्थव्यवस्था में निवेश की योजना बना रहा है और उत्तम क्वालिटी के विनिर्माण का जोखिम उठा रहा है, भारतीय निवेशकों और पेशेवरों के लिए महत्वपूर्ण गंतव्य है।
इसके आकार को देखते हुए यह स्पष्ट है कि यह भारतीय वस्तुओं के गंतव्य की तुलना में संग्रह स्थल ज्यादा है। एक वैश्विक उड्डयन और व्यावसायिक केंद्र के रूप में उभरा यह देश न केवल हमारे द्विपक्षीय संबंधों में अहम भूमिका निभाता है, बल्कि फारस की खाड़ी क्षेत्र के बाकी देशों से भी हमें जोड़ता है। आतंकवाद से अलग भी हमारी सुरक्षा में अमीरात की महत्वपूर्ण भूमिका है। इसका संबंध मनी लॉन्डरिंग, संगठित अपराध और तस्करी जैसे बड़े सवालों से भी है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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