राकेश दुबे@प्रतिदिन। ग्लोबल एचवाच इंडेक्स द्वारा जारी वैश्विक सामाजिक सुरक्षा रिपोर्ट में 96 देशों की सूची में भारत को 71वें स्थान पर रखा गया है। रिपोर्ट में भारत के सामाजिक सुरक्षा परिदृश्य पर चिंता जताई गई है। खासतौर से भारत में असंगठित क्षेत्र में कार्यरत लोगों और वृद्धों की स्थिति को पीड़ाजनक बताया गया है। रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 1961 में भारत में दूसरों पर निर्भर बुजुर्गों का आंकड़ा 10.9 प्रतिशत था, जबकि अब 65 प्रतिशत बुजुर्ग दूसरों पर आश्रित हैं। परिजनों पर निर्भर भारतीय बुजुर्गों को बुनियादी सुविधाएं पाने के लिए भारी संघर्ष करना पड़ता है।
इसी तरह विश्व आर्थिक मंच की सामाजिक सुरक्षा रिपोर्ट, 2015 में बताया गया है कि भारत आय की असमानता घटाने के बड़े मौके खो रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में आर्थिक वृद्धि की प्रक्रिया और लाभ में सामाजिक भागीदारी बढ़ाने संबंधी नीतिगत चुनौती उत्पन्न हो गई है। ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक को-ऑपरेशन ऐंड डेवलपमेंट द्वारा जारी रिपोर्ट का भी कहना है कि भारत में 40 करोड़ के श्रमबल में से केवल दस प्रतिशत श्रम बल संगठित क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं, जिन्हें आर्थिक-सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध है। शेष 90 प्रतिशत श्रम बल आर्थिक-सामाजिक सुरक्षा से वंचित हैं। यह वह वर्ग है, जो बीमारी लाभ, छुट्टी लाभ, बोनस, प्रोवीडेन्ट फंड, पेंशन, बेरोजगारी भत्ता जैसे लाभों से अनजान है।
कम आमदनी के कारण करोड़ों लोग अपनी अनिवार्य जरूरतों की पूर्ति भी नहीं कर पाते हैं, सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा का विचार तो बहुत दूर की बात है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन के सर्वे में पाया गया कि देश में जहां ग्रामीण क्षेत्रों की सबसे गरीब आबादी आज भी रोजाना 17 रुपये से कम पर गुजर-बसर करने को मजबूर है, वहीं शहरी इलाकों की सबसे गरीब आबादी का प्रति व्यक्ति दैनिक खर्च मात्र 23.40 रुपये है। शहरी इलाकों में 70 प्रतिशत आबादी करीब 43.16 रुपये प्रतिदिन खर्च करती है, जबकि ग्रामीण इलाकों की आधी आबादी रोजाना 34.33 रुपये प्रति व्यक्ति खर्च करके गुजर-बसर करती है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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