भोपाल। शिवपुरी के डीपीसी शिरोमणि दुबे पर एक शिक्षिका को पॉवर देने के लिए आदिवासी बच्चों का एक पूरा स्कूल बर्बाद कर देने का मामला प्रकाश में आया है। हालात यह हो गए कि आदिवासी बच्चों के पेरेंट्स ने या तो बच्चों को घर वापस बुला लिया या फिर मजबूरन प्राइवेट स्कूलों में भर्ती कराया। करीब 150 बच्चों के स्कूल में अब मात्र 19 बच्चे बचे हैं।
मामला प्राथमिक विद्यालय सकलपुर का है। यहां हरिजन आदिवासियों के बच्चे पड़ते हैं। संख्या करीब 150 हुआ करती थी। पढ़ाने के लिए मात्र 2 शिक्षिकाएं पदस्थ थीं। इनमें से एक सहायक अध्यापक मीना डांडे को डीपीसी ने कस्तूरबा गांधी बालिका छात्रावास सतनवाड़ा का अधीक्षक बना दिया। अब मात्र 1 शिक्षिका के सहारे स्कूल चल रहा है जो लगभग बंद के हालात में पहुंच गया है।
डीपीसी को नहीं है प्रतिनियुक्ति के अधिकार
प्रतिनियुक्तियां एक प्रशासनिक कार्य है और डीपीसी का पद अकादमिक है अत: डीपीसी को ऐसी प्रतिनियुक्तियां करने का अधिकार ही नहीं है, फिर भी डीपीसी ने अनाधिकृत रूप से आदेश जारी करते हुए महिला सहायक अध्यापक का अटैचमेंट कर डाला। सवाल यह है कि डीपीसी इस महिला सहायक अध्यापक को पॉवर देने के लिए इतने उतावले क्यों थे।
बंद पड़ा है छात्रावास
पिछले दिनों संयुक्त संचालक शिक्षा ग्वालियर की ओर से किए गए एक निरीक्षण में पाया गया था कि कस्तूरबा गांधी बालिका छात्रावास सतनवाड़ा बंद पड़ा हुआ है। वहां छात्राएं ही नहीं हैं, छात्रावास में ताले लड़के रहते हैं।
सवाल यह है कि बंद पड़े छात्रावास में अधीक्षिका करेगी क्या ?