ग्वालियर। एसआईसी भले ही प्राइवेट कंपनियों से प्रतियोगिता की बात करती हो परंतु उसका रवैया सरकारी ही है। एक व्यक्ति ने आपातकालीन जरूरतों के पूरा करने के लिए अपनी मैच्योरिटी से 1 साल पहले सरेंडर की, 6 साल बीत गए, एसआईसी ने अब तक पेमेंट नहीं किया।
भगवान लाल प्रजापति ने एलआईसी मुरैना ब्रांच में एक पॉलिसी (200229281) कराई थी। अगस्त 2006 में पॉलिसी मैच्योर हो जाने के बाद एलआईसी से उन्हें 21365 रुपए का चेक मिला था। उन्होंने इस रकम में 8636 रुपए और मिलाकर तीस हजार रुपए की भारतीय जीवन बीमा शाखा क्रमांक-1 में एजेंट हरी सिंह के माध्यम से एक नई पॉलिसी क्रमांक 200714438 कराई।
इस पॉलिसी का मैच्योर पीरियड 10 साल था, लेकिन श्री प्रजापति को 2009 में पैसे की जरूरत पड़ी, तो उन्होंने चार सितंबर 2009 को सरेंडर फॉर्म भरकर मूल पॉलिसी बॉन्ड जमा कर दिया। कुछ दिनों तक जब उन्हें चेक नहीं मिला, तो उन्होंने एजेंट और एलआईसी अफसरों से बात की। तब पता चला कि उनकी पॉलिसी कैंसिल हो चुकी है, उसमें पैसा ही नहीं है। जब इस पॉलिसी से संबंधित रिकॉर्ड एलआईसी में तलाशा गया, तो वह भी वहां से गायब था। इसके चलते अब उन्हें पिछले छह साल से पैसा वापस करने के लिए टहलाया जा रहा है।
कागज देखकर बताऊंगा
मैं अप्रैल में इस शाखा में आया हूं, यह केस मेरी जानकारी में नहीं है। जिनका पैसा फंसा हुआ है, अाप उन्हें मेरे पास भेज दें। हम इस मामले का कोई रास्ता निकालेंगे, ताकि पॉलिसी होल्डर को परेशान न होना पड़े। आरएन पुष्कर, वरिष्ठ शाखा प्रबंधक एलआईसी
मेरा पैसा कहां गया
मैंने अपने भविष्य के बचत के लिए एलआईसी में इसलिए पॉलिसी कराई थी कि वह सरकारी संस्था है और मेरा पैसा सुरक्षित रहेगा, लेकिन अब मेरा पैसा कहां गया, यह कोई नहीं बता पा रहा। मैं सभी अधिकारियों के हाथ जोड़ रहा हूं कि पैसा दिला दें। एजेंट से भी बात की, लेकिन अफसरों के रवैये से वह भी परेशान है। पता नहीं मेरा पैसा कब मिलेगा।
भगवान लाल प्रजापति, पॉलिसी होल्डर