इंदौर। लोकायुक्त के छापे भी अखबारी होकर रह गए हैं। जब छापे मारे जाते हैं तो बड़ा शोर होता है परंतु जब मामला कोर्ट में जाता है तो बात ही बदल जाती है। सहायक आयुक्त आदिवासी विकास विभाग छिंदवाड़ा में पदस्थ सहायक यंत्री रामलखनसिंह यादव के यहां मारे छापे में लोकायुक्त ने मीडिया को बताया था कि 10 करोड़ की काली कमाई मिली है परंतु कोर्ट को बताया कि 1.38 करोड़ की संपत्ति है। इसके साथ ही क्लोजर रिपोर्ट पेश कर दी गई।
लोकायुक्त पुलिस ने यादव के इंदौर स्थित आवास पर छापा मारकर अवैध संपत्ति पकड़ी थी। तब मीडिया को उसकी कीमत 10 करोड़ रुपए बताई थी। अब कहा कि यादव ने वेतन से मिले 30 लाख रुपए के मुकाबले एक करोड़ 38 लाख 50 हजार रुपए की संपत्ति अर्जित की, जो उसकी आय की तुलना में सात प्रतिशत है। इसलिए यह अनुपातहीन संपत्ति की श्रेणी में नहीं आती।
लोकायुक्त पुलिस ने 7 जनवरी 2012 को आरोपी के स्कीम 54 स्थित निवास पर छापा मारा था। जांच में इंदौर व मुरैना में यादव का मकान, प्लॉट, कृषि भूमि होने की जानकारी मिली थी।
छापे में ये संपत्ति भी मिली थी
स्कीम 54 में 2800 वर्ग फीट के आधे हिस्से में तीन मंजिला बंगला व बाकी पर गार्डन।
टवेरा, टाटा इंडिका, एक्टिवा,
315 बोर की एक रायफल, एक रिवॉल्वर,
एक लाख के जेवर सहित आठ लाख का घरेलू सामान,
डेढ़ लाख की बीमा पालिसियां, छह बैंकों में सात लाख रुपए जमा।
स्कीम 78 सेक्टर डी-सी में दो मंजिला मकान।
गुलमोहर कॉलोनी (कृष्ण विहार) में 10 हजार वर्ग फीट प्लॉट पर बाउंड्रीवॉल व दो कमरों का निर्माण।
तब लोकायुक्त पुलिस ने कहा था कि संपत्ति की कीमत बाजार भाव के हिसाब से लगभग 10 करोड़ रुपए है। यह कीमत आरोपी के वेतन से 300 गुना है।
इसलिए दी क्लीन चिट
क्लोजर रिपोर्ट में आरोपी के आय-व्यय का ब्योरा देते हुए कहा गया कि यादव की आय के मुकाबले अनुपातहीन संपत्ति सात प्रतिशत है, जो अनुपातहीन संपत्ति की श्रेणी में नहीं आती। सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णयों के अनुसार अनुपातहीन संपत्ति 10 प्रतिशत हो तो उस पर विचारण करना चाहिए। इस कारण क्लोजर रिपोर्ट पेश की जा रही है, जिसे स्वीकार किया जाए। कोर्ट ने इस पर चर्चा के लिए 19 अक्टूबर की तारीख तय की है।