मप्र में 10 दिनों में 23 किसानों ने की आत्महत्या

भोपाल। इन दिनों पूरे मप्र में किसान मौसम की मार से त्राहि त्राहि कर रहा है परंतु सरकार वर्षा का प्रतिशत देखकर केवल 114 तहसीलों को सूखाग्रस्त कर किसान हितैषी होने का दावा कर रही है। मप्र कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अरुण यादव ने दावा किया है कि अगले 10 दिनों में मप्र में 23 किसानों ने आत्महत्या कर ली है। यह एक भयानक दृश्य है, बावजूद इसके मुख्यमंत्री का विदेश आगमन पर जंग जीतकर आए राजा की तरह स्वागत आयोजन किया जा रहा है। 

यादव ने कहा कि 
मुख्यमंत्री जहां एक ओर विदेश यात्रा से लौटने के बाद अपना स्वागत कराने में मशगूल थे और किसानों को लेकर बयान दे रहे थे कि किसान भाईयो, मैं आपको जिंदगी से हारने नहीं दूंगा, उसी दिन 1 किसान ने आत्महत्या की। वहीं दूसरे दिन मुख्यमंत्रीजी किसानों की समस्याओं को लेकर पत्रकारों को संबोधित कर रहे थे, उसी दिन 4 किसानों ने आत्महत्या कर ली। 

नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2014 में देश भर में 5 हजार 650 किसानों से आत्महत्या की। म.प्र. में 826 किसानों ने आत्महत्या की। खुदकुशी करने वाले किसानों के मामले में मप्र का देश में तीसरा स्थान है।

डाॅ. मनमोहनसिंह सरकार द्वारा किसानों की ऋण माफी हेतु मध्यप्रदेश को नाबार्ड के माध्यम से मप्र राज्य सहकारी बैंक तथा मप्र राज्य कृषि और ग्रामीण विकास बैंक को 1584.69 करोड़ रू. प्राप्त हुए थे, उसमें 200 करोड़ रू. का घोटाला हुआ। उक्त जानकारी विधानसभा में सहकारिता मंत्री गौरीशंकर बिसेन ने कांग्रेस विधायकगणों के प्रश्न के जबाव में दी। 

2013-14 की मुआवजा राशि अभी तक किसानों को नहीं मिली है और अब पूरे प्रदेश में सोयाबीन की फसल बर्बाद हो चुकी है। प्रदेश सूखे की ओर बढ़ रहा है। प्रदेश में अराजकता का माहौल बना हुआ है। मुख्यमंत्री बतायें कैसे किसानों के आंसू पौछे जायेंगे, जबकि प्रदेश डेढ़ लाख हजार करोड़ के कर्ज में पहले से ही डूबा हुआ है।

किसानों को कर्ज माफी की बात ओर है। मुख्यमंत्री बैंकों के सामने नतमस्तक है और ऋण वसूली स्थगित करने का साहस भी नहीं जुटा पा रहे हैं। इससे बड़ी बात क्या होगी, किसान आत्महत्या कर रहे हैं, उनका पार्थिव शरीर घर में है और बैंक से ऋण वसूली के लिए फोन आ रहे हैं। इतना ही नहीं बैंक अधिकारी घर की चौखट पर खड़े हैं। 
किसान पुत्र मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चैहान विदेश यात्रा से लौटने के बाद किसानों का मजाक उड़ाते हुए कह रहे हैं कि जापान जैसे देश में केवल 6 प्रतिशत लोग खेती करते हैं, बाकी उद्योग धंधे करते हैं तो क्या मुख्यमंत्री जी ये कहना चाह रहे हैं कि किसान खेती छोड़ दे और अपनी जमीन उद्योगपतियों के हवाले कर दें, क्योंकि खुद के उद्योग स्थापित करने के लिए पैसों की आवश्यकता होती है और भूख से मरने वाले किसान के पास छोटे-छोटे कर्ज चुकाने के लिए पैसे तो है नहीं, उद्योग कहां से लगायेगा। रही बात सरकार की तो वो पहले से ही कटोरा हाथ में लिये खड़ी है। 

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!