श्राद्ध पक्ष में 12 अक्टूबर सोमवती अमावस्या का विशेष महत्व माना गया है। कर्मकांडी प. सोमेश्वर जोशी के अनुसार, श्राद्ध पक्ष जो 27 सितंबर से प्रारंभ हुए,12 अक्टूबर तक पूरे 16 दिन रहेंगे। इस बार तीन सालों के बाद सोमवती अमावस्या के आने से 12 अक्टूबर को विशेष पुण्य का महत्व माना गया है।
श्राद्ध पक्ष में सोमवती अमावस्या का आना विशेष दान,पुण्य का महत्व रखता है। इसके दौरान सुबह 11 बजे तक पितरों की पूजा-अर्चना कर 12 बजे ब्राह्मण को भोजन करवाया जाता है। लेकिन इस बार पितरों की तृप्ति के लिए दोपहर 12 बजे से शाम चार बजे तक माना गया है। पितृपक्ष में अंतिम तीस वर्षो में ऐसा सातवी बार हुआ हे जब श्राद्ध पक्ष में सोमवती अमावस्या आई हो और अगला योग तेरह साल बाद 2028 में बनेगा। खास यह है कि अमावस्या पूरे दिन रहेगी। अमावस्या के दिन सूर्य-चंद्र दोनों एक सीध में रहते हैं। सूर्य-चंद्र दोनों देवता हे और अमावस्या पितृ कार्य का दिन है।
इस अमावस्या का विशेष महत्त्व इसलिए भी है क्योकि इसबार न केवल सूर्य और चन्द्र कन्या राशि में हे बल्कि राहु और बुध भी सूर्य और चन्द्र उनकी उच्च कन्या राशि के साथ युक्ति करके दो ग्रहण के योग बनाता हे जिससे तर्पण, पितृदोष, श्राद्ध का कम से कम चार गुना फल मिलेगा विशेष अनुष्ठान, साधना, कामना पूर्ति और इक्छा अनुसार फल प्राप्ति के लिए योग्य जानकर पंडित दे ये कर्म करवाना चाहिए।
सोमवती अमावस्या तीन साल के उपरांत आने पर इस बार पितरों को तृप्त करने के समय का योग दोपहर 12 बजे से शाम 4 बजे तक माना गया है। अमावस्या तिथि सूर्योदय से दूसरे दिन सुबह 5.36 बजे तक रहेगी। शास्त्रों के अनुसार सोमवार को जब भी अमावस्या हो और वह शाम को रहे तो वह सहस्त्र गोदान का पुण्य प्रदान करती है।
जिन्हें तिथि ज्ञात नहीं, उनका श्राद्ध अमावस्या को
प. सोमेश्वर जोशी के अनुसार, श्राद्ध पक्ष के दौरान अपने पितरों के निमित्त जो व्यक्ति भोजन फल वस्त्र के साथ-साथ श्रद्धानुसार दक्षिणा दान करता है, उससे संतुष्ट होकर उनके पितर साधक को यश संपदा तथा दीर्घायु का आशीर्वाद देते है। इसके साथ-साथ पितरों की शांति के लिए तिल, जौ, चावल का पिंडदान भी किया जाना श्रेष्ठ माना गया है आमतौर पर सोमवती अमावस्या 3 साल में एक बार आती है। परंतु इस दिन पितरों को विशेष रूप से तृप्त करने के साथ-साथ प्रग पितरों को संतुष्ट करने के लिए सर्वश्रेष्ठ शुभ समय माना जाता है। श्राद्ध वाले दिन पीपल में जल चढ़ाकर तिलांजलि दिया जाना विशेष पुण्य का योग है। श्राद्ध पक्ष के दौरान पितरों की पूजा करने के साथ-साथ ब्राह्मणों को पितरों के निमित भोजन भी करवाया जाता है। शास्त्रों में माना गया है कि ऐसा करने से हमारे पितर खुश रहते है।
सोमवार का योग पितरों के साथ देवताओं की कृपा भी प्रदान करता है। पीपल और भगवान विष्णु की पूजा करना चाहिए। इससे आरोग्य और ऐश्वर्य की प्राप्ति होगी, वहीं पितरों के निमित्त तर्पण, श्राद्धकर्म से उनका आशीर्वाद मिलेगा।