स्वीडेन दुनिया का पहला ऐसा देश बन गया है, जहां नौकरी सरकारी हो या प्राइवेट, काम के घंटे सिर्फ 6 घंटे ही होंगे। अभी इसे ट्रायल के तौर पर शुरू किया गया है और कोई बहुत बड़ी समस्या पैदा नहीं हुई तो कर्मचारियों को आगे भी दिन में सिर्फ 6 घंटे ही दफ्तर में काम करना होगा।
काम के घंटे क्यों कम किए गए?
दरअसल स्वीडेन की कुछ प्राइवेट कंपनियों ने कुछ साल पहले 6 घंटे वर्किंग ऑवर्स इसलिए शुरू किया था ताकि नौकरी छोड़कर जा रहे लोगों को रोका जा सके। इससे लोगों का नौकरी छोड़कर जाना तो कम हुआ ही, प्रोडक्टिविटी भी बढ़ गई। पाया गया कि कोई कर्मचारी जितना काम 8 या 9 घंटे में करता था, तकरीबन उतना या उससे ज्यादा काम 6 घंटे में कर लेता था। हालांकि स्वीडेन के अधिकारी ये मान रहे हैं कि कुछ सर्विसेज़ में काम के घंटे कम करने से ज्यादा कर्मचारियों की जरूरत पड़ेगी। मिसाल के तौर पर सिक्योरिटी सर्विसेज़ या सेल्स मैन का काम। ऐसी नौकरियों में अब 3 की बजाय 4 शिफ्टों में काम होगा।
काम के कितने घंटे हैं सही?
काम के घंटों पर दुनिया भर में हुई ज्यादातर रिसर्च में यही पता चला है कि कोई भी कर्मचारी 6 घंटे ही ठीक से काम कर सकता है। इसके बाद वो सिर्फ टाइम काटता है। इसके बावजूद आज भी दुनिया भर में ज्यादातर देशों में कर्मचारियों को हर दिन 8 से 10 घंटे तक काम करना पड़ता है। भारत जैसे देश में तो दफ्तर आने-जाने में भी लोगों को औसतन 1 से 2 घंटे खर्च करने पड़ते हैं। अगर कोई कर्मचारी लंबे समय तक दफ्तर में रहता है तो इसका बुरा असर उसकी फेमिली लाइफ और नींद पर पड़ता है, जिससे आगे चलकर उसकी काम करने की क्षमता और उत्साह कम होता जाता है।