भोपाल। दालों की कीमतें भले ही बढ़ गईं हों परंतु बिक्री बहुत तेजी से घट गई है। यह चौंकाने वाला आंकड़ा है। दामों में 2 गुना से ज्यादा की वृद्धि हुई तो 93 प्रतिशत बिकवाली गिर गई। जहां अरहर की औसत बिक्री 15 टन रोजाना थी, अब 1 टन भी नहीं रह गई है। इसकी बजाए लोग मसूर और चना दाल खरीद रहे हैं।
कीमत बढ़ने से नुकसान
जबलपुर में दाल के थोक व्यापारी राजकुमार मतानी के मुताबिक गल्ले के भाव स्थानीय बाजार से तय नहीं होते। मल्टीनेशनल कंपनियं बाजार तय करती हैं। हर मिनट में देशभर के बाजारों से रेट मोबाइल पर पहुंचते हैं। उसी से भाव घटते-बढ़ते हैं। व्यापारी ही नहीं किसान तक बाजार के मुताबिक ही माल बेचते हैं। सोमवार को अरहर दाल में 10 रुपए की मंदी हुई। इसके बाद 180 रुपए किलो की दाल 170 रुपए किलो हो गई। व्यापारी ने कहा कि कीमतों के उछाल से उनके व्यापार पर असर हुआ है। एक माह पहले तक 100-110 रुपए किलो की दाल को दिनभर में 15 टन बेच पाते थे। अब मुश्किल से दिनभर में एक टन भी दाल बिक रही है।
दाल की बजाए सब्जी
दाल के आसमान छूते भाव के कारण घरों में सब्जी की डिमांड बढ़ गई है। ठंड के साथ ही बाजार में भाजी की वेरायटी आ गई है। महिलाएं टेस्ट बदलने के लिए लाल भाजी, पालक और दूसरी रसीली सब्जी बनाकर दाल की कमी दूर कर रही हैं।
इन दालों की डिमांड
अरहर दाल के विकल्प में मसूर, मूंग और चना की दाल की डिमांड बढ़ी है। व्यापारी राजकुमार मतानी ने बताया कि अरहर के दाम चढ़ने से दूसरी दालों के खपत 20 फीसदी ज्यादा हो गई है।
जमाखोरी पर अंकुश, मुनाफाखोरी पर नहीं
दाल की जमाखोरी रोकने के लिए सरकार स्टॉक लिमिट तय कर रही है। मप्र आवश्यक वस्तु व्यापारी (स्टॉक सीमा तथा जमाखोरी पर प्रतिबंध) आदेश 2015 लागू कर दिया है, लेकिन मुनाफाखोरी पर अंकुश लगाने के लिए कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। 140 से 170 रुपए किलो वाली दाल को 200 रुपए किलो बेचा जा रहा है। खाद्य विभाग द्वारा दाल व्यापारियों के मारे गए छापे में बरामद 63 क्विंटल दाल की कीमत 145 रुपए किलो की ही रही, लेकिन इसे 200 रुपए किलो बेंचा जा रहा था।