कौन समझाए ! दवा और उपकरण अलग हैं सरकार

राकेश दुबे@प्रतिदिन। गैर संचारी रोगों (एनसीडी) के बढ़ने का कारण माने जाने वाले चिकित्सकीय उपकरण वास्तव में मरीजों को बेहतर करने और उनकी जान बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, मगर उन पर स्वास्थ्य सेवा के मद का सिर्फ छह फीसदी ही खर्च किया जाता है। दिक्कत यह है कि यहां चिकित्सकीय उपकरणों को भी दवाई का हिस्सा मान लिया गया है। जबकि सामान्य ज्ञान यही है कि दोनों बिल्कुल जुदा हैं। 

कई आधुनिक चिकित्सकीय उपकरण रोगों के मशीनी/ विद्युतीय इंजीनियरिंग निराकरण में इस्तेमाल होते हैं, वहीं दवाई औषध विज्ञान और रसायन शास्त्र पर आधारित होती है। इतना ही नहीं, चिकित्सकीय उपकरण मशीनी अथवा विद्युतीय गलती की वजह से नाकाम होते हैं, जबकि दवाई तब अपना असर नहीं दिखाती, जब मरीजों को या तो वह गलत दी जाती है अथवा जरूरत से ज्यादा दे दी जाती है। १३०० लोगों पर किए गए एक हालिया सर्वेक्षण का नतीजा बताता है कि महज तीन-चौथाई लोगों ने ही चिकित्सकीय उपकरणों का इस्तेमाल किया। यानी महज छह फीसदी लोगों ने यह माना कि ये उपकरण दवाई से अलग हैं। इतना ही नहीं, स्थिति यह भी है कि दुनिया भर में मौजूद १४००० तरह के उपकरणों में महज १४ ही भारत में मान्य किए गए हैं।

लिहाजा यह समझना अनिवार्य है कि उपकरणों और दवाइयों में आखिर अंतर क्या है? इसे एक उदाहरण से समझते हैं। एस्प्रीन नामक दवाई कहीं से भी खरीदें, उसकी गुणवत्ता समान रहेगी। मगर दिल संबंधी रोगों के इलाज में इस्तेमाल किए जाने वाले स्टेंट या हड्डियों के प्रत्यारोपण में इस्तेमाल होने वाले जीवनरक्षक उपकरणों को खरीदने में खासा ध्यान रखना होता है। स्टेंट के कई रूप बाजार में मौजूद होते हैं, जो उसकी लंबाई-चौड़ाई, मोटाई अथवा व्यास के आधार पर अलग-अलग होते हैं। इतना ही नहीं, दवाई को निगलने के बनिस्बत इन उपकरणों को शरीर में लगाने के लिए अतिप्रशिक्षित डॉक्टरों की जरूरत होती है, साथ ही ऑपरेशन के समय भी विशेष ध्यान रखना पड़ता है। देश में सरकारे दवा बाँटने पर जोर देती है निदान के उपकरणों पर नहीं | यह नागरिकों का दुर्भाग्य है |

श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!