राकेश दुबे@प्रतिदिन। वैसे तो नवीनतम आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, पुराने आंकड़े भी कम गंभीर नहीं हैं। देश में वर्ष 2011 में कुल 13301 वर्ष 2012 में 22060, वर्ष 2013 में 71780 साइबर अपराध दर्ज किए गए। साल 2014 में साइबर क्राइम की करीब डेढ़ लाख वारदातें होने की बात अध्ययन में सामने आई है। जिसके 2015 में बढक़र लगभग दोगुना हो जाने का अनुमान जताया गया है। यह बात भी सामने आई कि इन्हें अंजाम देने वाले अधिकतर अभियुक्त युवा हैं। जिनकी आयु 18 से 30 साल के बीच है। साइबर क्राइम सी बात की पुष्टि करती है कि पिछले कुछ वर्षो मे इन अपराधों में जमकर बढ़ोतरी हुई है और निशाने पर भी अक्सर युवा ही रहते हैं।
वर्तमान में ऑनलाइन वित्तीय लेन-देन का 48 से 60 प्रतिशत हिस्सा मोबाइल के माध्यम से किया जा रहा है। बढ़ती ऑनलाइन बैंकिंग सेवाओं के हिसाब से 2015 के अंत तक इसमें 55 से 60 प्रतिशत वृद्धि होने का अनुमान है। साइबर अपराधों के मामले में दुनिया भर के देशों में अमेरिका और जापान के बाद भारत तीसरे स्थान पर हैं। हालांकि दुनिया में दूसरे देशों के मुकाबले भारत में साइबर अपराध भले ही कम हैं पर इनके बढ़ते आंकड़े नए सिरे से सोचने और ठोस पहल करने को विवश करते हैं।
साइबर अपराधों से अब महिलाएं भी अछूती नहीं है। एक हालिया सर्वे के मुताबिक संयुक्त राष्ट्र संघ की एक नई रिपोर्ट की मानें तो भारत में केवल 35 फीसदी महिलाओं ने ही अपने खिलाफ हुए साइबर अपराध की शिकायत की, जबकि साइबर अपराध से पीडित लगभग 46.7 प्रतिशत महिलाओं ने किसी तरह की कोई शिकायत नहीं की। इस सर्वे में जिन अन्य देशों को शामिल किया गया है उनमें से भारत के साथ कुछ नाम हैं- पाकिस्तान, पेरू, नाइजीरिया, इंडोनेशिया और केन्या।
इस रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक स्तर पर 18 से 24 साल की महिलाएं और लड़कियां खासतौर पर अपराध का निशाना बनती हैं। रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले देशों की 5 में से 1 महिला औसतन ऐसी है, जिसके खिलाफ अगर साइबर अपराध होता है तो दोषी को सजा मिलने की संभावना बेहद क्षीण होती है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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