भोपाल। आजाद अध्यापक संघ इन दिनों छोटी छोटी बातों में उलझ रहा है। लक्ष्य से भटकते हुए कंफ्यूजन की स्थिति में आता दिखाई दे रहा है। ठीक वैसे ही जैसे एक समय आम आदमी पार्टी आ गई थी। अनुभव की कमी आंदोलन के दौरान भी दिखाई दे रही थी, आंदोलन के बाद भी दिखाई दे रही है। गंभीरता और परिपक्वता जैसे विषय पर चिंता की जरूरत है।
दरअसल आजाद अध्यापक संघ को भी उम्मीद नहीं थी कि यह आंदोलन इस स्तर तक सफल होगा। इसलिए आंदोलन में समन्वय का अभाव बना रहा। अब जब आंदोलन होकर गुजर गया तो आजाद अध्यापक संघ के कुछ पंथी नेता बनने लग गए हैं। वो इस आंदोलन का श्रेय बटोरते घूम रहे हैं। ऐसे जता रहे हैं मानो मध्यप्रदेश के 2 लाख अध्यापक परिवार उनकी एक आवाज पर खड़े हो जाएंगे। यह गलतफहमी भी ठीक वैसी ही है जैसी उमा भारती को हुआ करती थी।
दरअसल मप्र का अध्यापक सुलग रहा है। आजाद अध्यापक संघ ने झंडा उठाया तो सब उसके नीचे आ गए कोई और उठा देता तो उसके नीचे चले जाते। वो तो बस संविलियन चाहते हैं, वो बस इतना चाहते हैं कि जैसे मप्र शासन के दूसरे कर्मचारी होते हैं, वैसे ही उन्हे भी मान लिया जाए। विभाग का नाम शिक्षा विभाग हो या कुछ और लेकिन एक विभाग तो हो। जिसका मुख्यालय हो। जहां नीति बने और नियंत्रण हो। इलाकाई अधिकारियों और नेताओं के प्रेशर में अब रहने के मूड में नहीं है अध्यापक।
आंदोलन के स्थगन के बाद से अब तक आजाद अध्यापक संघ ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। आंदोलन पर गए कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई के नोटिस जारी किए गए हैं। संघ की ओर से कतई बयान जारी नहीं हुआ कि यदि कार्रवाई की गई तो परिणाम भुगतने होंगे। ऐसा लग रहा है जैसे 5 अक्टूबर से पहले मौन धारण कर लिया है। हाईकोर्ट ने एक नोटिस क्या जारी कर दिया पूरा का पूरा संघ ही सहम गया। लक्ष्य की ओर एक कदम आगे नहीं बढ़ रहे हैं। पता नहीं किन किन मामलों में उलझे पड़े हैं।