राकेश दुबे@प्रतिदिन। टेलीकॉम सेवाओं, पेट्रोल-डीजल, मिनरल वाटर वगैरह पर एक उपकर लगाने की मुख्यमंत्रियों के पैनल का प्रस्ताव जिसका पैसा क्लीन इंडिया कैंपेन पर खर्च हो, विवादास्पद तो नहीं है, लेकिन कई सवाल खड़े करता है है। इस उपकर की घोषणा बजट में की गई थी और अगले पांच वर्षों में देश को स्वच्छ बनाने में इससे प्राप्त राशि खर्च होगी। लेकिन इससे टेलीकॉम सेवाएं, पेट्रोल-डीजल और मिनरल वाटर महंगे हो सकते हैं। अब सवाल है कि इस देश का मध्यवर्ग अपनी कुल आय पर लगभग 54 प्रतिशत तक टैक्स, लेवी वगैरह दे देता है, तो उससे यह अतिरिक्त उपकर वसूलना कितना उचित होगा? क्या इसके लिए कोई और रास्ता नहीं ढूंढा जा सकताहै ? बजट में लगातार सेवाकर और उसका दायरा बढ़ाया जाता रहा है। देश का मध्यवर्ग, जिसके बूते यह अर्थव्यवस्था चलती है, आज आर्थिक समस्याओं से जूझ रहा है। मकानों के बढ़ते किराये, बच्चों की पढ़ाई का बढ़ता खर्च, खाने-पीने की चीजों के बढ़ते दाम, ट्रांसपोर्ट और बिजली की बढ़ती कीमतें और फिर ऊंची टैक्स दरें उसकी माली हालत बिगाड़ने के लिए काफी हैं।
सरकारों की पुरानी आदत है कि वे किसी भी बड़े खर्च के लिए अलग से टैक्स लगाने को तैयार रहते हैं। १९७१ में बांग्लादेश से आए शरणार्थियों के लिए इंदिरा गांधी की सरकार ने एक उपकर लगाया था, जो डाक टिकट खरीदने वालों से कई वर्ष तक वसूला जाता रहा। उन पैसों से लाखों शरणार्थियों के खाने-पीने और रहने की व्यवस्था की गई थी। उसमें करोड़ों रुपये खर्च हुए। तब उस वसूली पर किसी ने बुरा नहीं माना, लेकिन कई वर्षों तक जब वह टैक्स वसूला जाता रहा, तो लोगों को तकलीफ होने लगी। इसके बाद सरकार ने उस टैक्स को उसी का हिस्सा बना दिया। यह बात लोगों को नागवार गुजरी। ऐसा ही कुछ शिक्षा उपकर के मामले में हो रहा है। यह टैक्स देश की शिक्षा का स्तर सुधारने और मिड डे मील की व्यवस्था करने के लिए २००४ में तत्कालीन वित्त मंत्री ने लगाया था। यह कुल आयकर का दो प्रतिशत है। शुरुआत में इस टैक्स को अच्छा माना गया था और इसकी सराहना होती रही, लेकिन कुछ वर्षों के बाद यह सवाल उठा कि इस पैसे का क्या इस्तेमाल हो रहा है? आंकड़े बताते हैं कि शुरू में यह पैसा न तो देश के बच्चों की शिक्षा के लिए पूरी तरह खर्च हो पाया और न ही उनके मिड डे मील पर। पहले साल ही इस मद में ५००० करोड़ रुपये से अधिक की राशि इकट्ठा हुई थी। यह राशि लगातार बढ़ती गई और २०१४ -१५ में यह ४०,१०५ करोड़ रुपये हो गई। यह सही है कि सरकार इससे ज्यादा पैसे बच्चों की शिक्षा और मिड डे मील पर खर्च करती है, लेकिन बड़ा सवाल है कि क्या कोई उपकर एक दशक से ज्यादा समय तक लगा रह सकता है?
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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