जबलपुर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने हजारों आदिवासियों की 'लाइफ लाइन' नैरोगेज ट्रेन बंद होने पर परिवहन की वैकल्पिक व्यवस्था के संबंध में जवाब-तलब कर लिया है। प्रशासनिक न्यायाधीश राजेन्द्र मेनन व जस्टिस सीवी सिरपुकर की युगलपीठ ने इस सिलसिले में केन्द्र व राज्य शासन, रेल मंत्रालय, दक्षिणपूर्व मध्य रेलवे और राज्य के परिवहन व वित्त विभाग को नोटिस जारी किए हैं।
रोजाना 15 हजार आते-जाते रहे
शुक्रवार को मध्यप्रदेश हाईकोर्ट बार के सदस्य एडवोकेट बीआर विजयवार की जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान जनहित याचिकाकर्ता का पक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता आदर्शमुनि त्रिवेदी व मुकेश सुलाखे ने रखा। उन्होंने दलील दी कि छोटी लाइन की ट्रेन से रोजाना 15 हजार लोग यात्रा करते थे। 1806 में स्थापित जबलपुर-नैनपुर नैरोगेज रेलवे लाइन घंसौर, कहानी, नैनपुर, बरघाट, बालाघाट आदि क्षेत्रों के 5 वीं अनुसूची के क्षेत्रों में रहने वाले लाखों आदिवासियों-गरीबों के लिए आवागमन व परिवहन का एकमात्र साधन थी।
6 से 8 साल कैसे करेंगे यात्रा
हाईकोर्ट को अवगत कराया गया कि नैरोगेज से ब्रॉडगेज में तब्दील होने की प्रक्रिया अभी लंबी है। इसमें 6 से 8 साल लग सकते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि 15 हजार आदिवासी कैसे गंतव्य तक का सफर पूरा किया करेंगे? चूंकि संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत मौलिक अधिकार का उल्लंघन होने की स्थिति सामने है अतः वैकल्पिक इंतजाम आवश्यक है।
बालाघाट-नैनपुर नैरोगेज फिर शुरू की
वरिष्ठ अधिवक्ता आदर्शमुनि त्रिवेदी ने कहा कि 1 नवंबर से बंद होने वाली नैनपुर-बालाघाट नैरोगेज लाइन को अलग 6 माह तक बंद नहीं करने का निर्णय वैकल्पिक परिवहन व्यवस्था उपलब्ध न होने के कारण दपूमरे ने जनप्रतिनिधियों की मांग पर किया है। जबकि जबलपुर के स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने हाउबाग-नैनपुर नैरोगेज बंद करने के पूर्व वैकल्पिक व्यवस्था की ओर ध्यान नहीं दिया। हालत यह है कि 37 बसों के परमिट जारी होने के बावजूद सड़क जर्जर होने के कारण महज 3 बसों के परमिट उठाए गए हैं।