इस बदलते दौर में जेपी कितने जरूरी

तुलाराम अठया। आज जबकि देश में नफरत का जहर फैलाया जा रहा है कट्टरवादी ताकतें हमारे सामाजिक तानेबाने को छिन्न भिन्न कर रहीं है। भय का वातावरण बढ़ता जा रहा है और आजादी क्षीण होती जा रही है।''लेखकों की हत्या हो रही है लोगों को उनके बुनियादी अधिकारों खाने, पहनने, विचारों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति पर भी हमला हो रहा है। 'घर-वापसी', 'लव-जिहाद' से लेकर किसी न किसी बहाने ईसाइयों और मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाने, गोडसे को पूजने, अन्धविश्वास के विरुद्ध काम कर रहे लेखकों की हत्याओं से लेकर दादरी कांड तक का लम्बा सिलसिला, हमें सोचने को मजबूर करता है की हम अपने राष्ट्रको किस दिशा में ले जाना चाहते है । ऐसे दौर में जेपी के विचारों और उन जैसे व्यक्तित्व के नेतृत्व की उपादेयता बढ जाती है। 

जयप्रकाश नारायण (11 अक्टूबर, 1902 - 8 अक्टूबर, 1979) स्वतंत्रता सेनानी और समाजवादी राजनेता थे। जयप्रकाश बिहार के सारन जिले के सिताबदियारा गांव में पैदा हुए। 1922 मे उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका गए, जहाँ उन्होंने 1922-1929 के बीच कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय-बरकली, विसकांसन विश्वविद्यालय में समाज-शास्त्र का अध्ययन किया। महंगी पढ़ाई के खर्चों को वहन करने के लिए उन्होंने खेतों, कंपनियों, रेस्टोरेन्टों मे काम किया। वे मार्क्स के समाजवाद से प्रभावित हुए। उन्होने एम.ए. की डिग्री हासिल की। उनकी माताजी की तबियत ठीक न होने की कारण वे भारत वापस आ गए और पी.एच.डी पूरी न कर सके।

देश में ‘संपूर्ण क्रांति’ की अलख जगाने वाले लोकनायक जयप्रकाश नारायण कभी घोर मा‌र्क्सवादी हुआ करते थे। अमेरिका से पढ़ाई करने के बाद जेपी 1929 में स्वदेश लौटे। उस वक्त वह घोर मा‌र्क्सवादी हुआ करते थे। वह सशस्त्र क्रांति के जरिए अंग्रेजी सत्ता को भारत से बेदखल करना चाहते थे, हालांकि बाद में बापू और नेहरू से मिलने एवं आजादी की लड़ाई में भाग लेने पर उनके इस दृष्टिकोण में बदलाव आया।

1932 मे गांधी, नेहरु और अन्य महत्वपूर्ण नेताओ के जेल जाने के बाद, उन्होने भारत मे अलग-अलग हिस्सों मे स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया। उन्हें भी मद्रास में सितंबर 1932 मे गिरफ्तार कर नासिक जेल भेज दिया गया। यहाँ उनकी मुलाकात मीनू मसानी, अच्युत पटवर्धन, एन. सी. गोरे, अशोक मेहता, एम. एच. दांतवाला, चार्ल्स मास्कारेन्हास और सी. के. नारायणस्वामी जैसे उ नेताओं से हुई। जेल मे इनके द्वारा की गई चर्चाओं ने कांग्रेस सोसलिस्ट पार्टी (सी.एस.पी) को जन्म दिया। सी.एस.पी समाजवाद में विश्वास रखती थी। 

1939 मे उन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, अंग्रेज सरकार के खिलाफ लोक आंदोलन का नेतृत्व किया। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और 9 महीने की कैद की सज़ा सुनाई गई। 1942 भारत छोडो आंदोलन के दौरान वे आर्थर जेल से फरार हो गए। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हथियारों के उपयोग को सही समझा। नेपाल जा कर आज़ाद दस्ते का गठन किया और उसे प्रशिक्षण दिया। उन्हें पंजाब में चलती ट्रेन में सितंबर 1943 मे गिरफ्तार कर लिया गया। 16 महीने बाद जनवरी 1945 में उन्हें आगरा जेल मे स्थांतरित कर दिया गया। इसके उपरांत गांधी जी ने यह साफ कर दिया था कि डॉ॰ लोहिया और जेपी की रिहाई के बिना अंग्रेज सरकार से कोई समझौता नामुमकिन है। दोनो को अप्रेल 1946 को आजाद कर दिया गया।

जयप्रकाश जी की निगाह में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार भ्रष्ट व अलोकतांत्रिक होती जा रही थी. 1975 में निचली अदालत में गांधी पर चुनावों में भ्रष्टाचार का आरोप साबित हो गया और जयप्रकाश ने उनके इस्तीफे की मांग की। इसके बदले में इंदिरा गांधी ने राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर दी और नारायण तथा अन्य विपक्षी नेताओं को गिरफ़्तार कर लिया।

पांच जून 1975 को जे. पी. ने घोषणा की - "भ्रष्टाचार मिटाना, बेरोजगारी दूर करना, शिक्षा में क्रान्ति लाना, आदि ऐसी चीजें हैं जो आज की व्यवस्था से पूरी नहीं हो सकतीं; क्योंकि वे इस व्यवस्था की ही उपज हैं। वे तभी पूरी हो सकती हैं जब सम्पूर्ण व्यवस्था बदल दी जाए। और, सम्पूर्ण व्यवस्था के परिवर्तन के लिए क्रान्ति, ’सम्पूर्ण क्रान्ति’ आवश्यक है।" सम्पूर्ण क्रान्ति के आह्वान उन्होने श्रीमती इंदिरा गांधी की सत्ता को उखाड़ फेकने के लिये किया था।लोकनायक नें कहा कि सम्पूर्ण क्रांति में सात क्रांतियाँ शामिल है - राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक, शैक्षणिक व आध्यात्मिक क्रांति। इन सातों क्रांतियों को मिलाकर सम्पूर्ण क्रान्ति होती है। सम्पूर्ण क्रांति की तपिश इतनी भयानक थी कि केन्द्र में कांग्रेस को सत्ता से हाथ धोना पड़ गया था। बिहार से उठी सम्पूर्ण क्रांति की चिंगारी देश के कोने-कोने में आग बनकर भड़क उठी थी। जेपी के नाम से मशहूर जयप्रकाश नारायण घर-घर में क्रांति का पर्याय बन चुके थे। 

जनवरी 1977 को आपातकाल हटा लिया गया और लोकनायक के “संपूर्ण क्रांति आदोलन” के चलते देश में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी। इस क्रांति का प्रभाव न केवल देश में, बल्कि दुनिया के तमाम छोटे देशों पर भी पड़ा था। वर्ष 1977 में हुआ चुनाव ऐसा था जिसमें नेता पीछे थे और जनता आगे थी। यह जेपी के करिश्माई नेतृत्व का ही असर था।

आज स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भागीदारी करने वाले, सर्वहारा के हक के लिए जोरदार ढंग से आवाज उठाने वाले, आजादी के बाद सामाजिक समानता के सबसे बड़े पैरोकार जयप्रकाश नारायण और उनकी संपूर्ण क्रांति राजनीति के गलियारे में कहीं गुम हो गई है। जनता को सत्ता परिवर्तन के लिए एकत्रित करने वाले किसी नायक की आज कमी साफ नजर आ रही है।

एक साक्षात्कार में जेपी ने संघ के बारे में कहा था :-राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेताओं और कार्यकर्ताओं से अपने संपर्क के दौरान मुझे निश्चय ही उनके दृष्टिकोण में परिवर्तन नजर आया। उनमें अब अन्य समुदायों के प्रति शत्रुता की भावना नहीं है। लेकिन अपने मन में वे अभी भी हिंदू-राष्ट्र की अवधारणा में विश्वास करते हैं। वे यह कल्पना करते हैं कि मुसलमान और ईसाई (जैसे अन्य समुदाय) तो पहले से ही संगठित हैं, जबकि हिंदू बिखरे हुए और असंगठित और इसलिए वे हिंदुओं को संगठित करना अपना मुख्य काम मानते हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेताओं के इस दृष्टिकोण में परिवर्तन होना ही चाहिए। मैं यही आशा करता हूं कि वे हिंदू-राष्ट्र के विचार को त्याग देंगे और उसकी जगह भारतीय राष्ट्र के विचार को अपनाएंगे। भारतीय राष्ट्र का विचार सर्वधर्म समभाव वाली अवधारणा है और यह भारत में रहने वाले सभी समुदायों को अंगीकार करता है। अगर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने को भंग नहीं करता और जनता पार्टी द्वारा गठित युवा या सांस्कृतिक संगठनों में शामिल नहीं होता तो उसे कम-से-कम सभी समुदायों के लोगों, मुसलमानों और ईसाइयों को अपने में शामिल करना चाहिए। उसे अपने संचालन और काम करने के तरीकों का लोकतंत्रीकरण करना चाहिए और सभी जातियों और समुदायों के लोगों, हरिजन, मुसलमान और ईसाई को अपने सर्वोच्च पदों पर नियुक्त करने की पूरी कोशिश करनी चाहिए।

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